भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते का महत्वपूर्ण दौर
हाल ही में भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर चर्चा तेजी से बढ़ी है। इस समझौते का लक्ष्य दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाना है, लेकिन इस प्रक्रिया में भारतीय कृषि सेक्टर भी इसकी सीमाओं और संभावनाओं का सामना कर रहा है। खासकर तेलseed और edible oil सेक्टर की चिंताएँ इस समय राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही मोर्चों पर चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
भारतीय किसान और कृषि सेक्टर की चिंताएँ
सभी जानते हैं कि भारत का कृषि सेक्टर खासतौर पर किसानों के लिए जीवनरेखा है। भारतीय किसान मुख्य रूप से non-GMO soyabean उगाते हैं, जिनका उत्पादन अनुकूल मौसम और पारंपरिक खेती पर निर्भर है। वहीं, अमेरिका से आने वाले GM soyabean की मिक्सिंग से भारतीय किसान और कृषि उद्योग में असमानता का खतरा मंडरा रहा है। भारत के कृषि विशेषज्ञ और उद्योग संगठन इस बात को लेकर चिंता जता रहे हैं कि यदि भारत में अमेरिकी soyabean की अनुमति दी गई, तो इससे गैर-GMO soyabean की प्रतिस्पर्धा कमजोर हो सकती है और भारतीय किसानों को नुकसान हो सकता है।
आयात पर नियंत्रण और सुरक्षा के उपाय
भारतीय उद्योग और किसान संगठनों का मानना है कि भारत को अपने कृषिप्रवेश पर सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए। इस संदर्भ में, संघीय सरकार से आग्रह किया जा रहा है कि जरूरी संरक्षणात्मक कर (protective duties) को बनाए रखा जाए ताकि घरेलू बाजार पर इसकी नकारात्मक असर न पड़े। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि वैश्विक subsidy की असमानता और राष्ट्र-राज्य के हितों को देखते हुए, भारत को अपने कृषि इनपुट्स की सुरक्षा करनी चाहिए।
खरीफ सत्र और फसल की तस्वीर
आंकड़ों के अनुसार, इस साल की खरीफ फसल के सिमित विस्तार के बावजूद, तेलseed की खेती मजबूती से कर रही है। मध्य जुलाई तक, तेलseed की खेतों में बोआई 156.76 लाख हेक्टेयर हो चुकी है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 162.80 लाख हेक्टेयर था। इस आंकड़े से स्पष्ट है कि भारतीय किसान अभी भी कृषि क्षेत्र में भरोसा बनाए हुए हैं, हालांकि कीमतों में उतार-चढ़ाव से उनकी चिंता भी बढ़ रही है।
इस मौसम में बहुमूल्य groundnut की खेती में अच्छी वृद्धि देखी गई है, जो बाजार की बेहतर कीमतों और घरेलू मांग के कारण संभव हुआ है। वहीं, soyabean की खेती में 6 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है, जो कि फसल की पसंद और मौसम की बदलाव के कारण हो सकता है। विशेषज्ञ इस ट्रेंड पर नजर रख रहे हैं, क्योंकि soyabean भारत के ऑइलसीड सेक्टर का महत्वपूर्ण स्तंभ है और इससे तेल तथा meal का उत्पादन होता है।
वैश्विक ऊर्जा नीतियों का भारतीय ऑइलसीड उद्योग पर असर
वैश्विक स्तर पर, biofuel की बढ़ती मांग भारतीय edible oil सेक्टर के लिए नई चिंताओं को जन्म दे रही है। इंडोनेशिया का B50 biodiesel कार्यक्रम, जिसमें पाम तेल का 50 प्रतिशत भाग ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल होता है, और अमेरिका का soyabean oil का renewable fuels में रूपांतरण, इन दोनों पहलुओं से विश्व बाजार में edible oil की उपलब्धता घटने का खतरा है। इससे भारत जैसे आयात-निर्भर देशों के लिए तेल की कीमतें बढ़ने, उपलब्धता कम होने और कीमत में अस्थिरता का खतरा अधिक बढ़ रहा है।
अभी हाल में crude palm oil की कीमतें जून से जुलाई के बीच बढ़ी हैं, जो घरेलू मांग को देखते हुए चिंता का विषय है। इस परिस्थिति में, भारत सरकार और उद्योग जगत इसे लेकर सजग हैं और कोशिश कर रहे हैं कि घरेलू जरूरी ऊर्जा स्रोतों का संरक्षण हो, और भारत का खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा खतरे में न पड़े।
सरकार एवं नीति-निर्माताओं का प्रयास
इस संदर्भ में सरकार द्वारा हाल ही में जारी एडवाइजरी से संकेत मिलता है कि वे राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं पोषण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में गंभीर हैं। उन्होंने ऑफिसों और कार्यस्थलों पर तेल और चीनी की बोर्ड प्रदर्शित करने को प्रोत्साहित किया है, ताकि जनमानस में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ सके।
जैसे-जैसे भारत अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रहा है, वैसे-वैसे नीति-निर्माता भी इस बात को लेकर सतर्क हैं कि अर्थव्यवस्था में सुधार हो और किसानों का हित सुरक्षित रहे। सरकारें और उद्योग इस विषय पर लगातार संवाद कर रहे हैं, ताकि किसी भी समझौते में भारतीय हितों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके।
इस बात का महत्त्व और निष्कर्ष
अंत में, यह स्पष्ट है कि भारत जैसे विकासशील देश के लिए वैश्विक व्यापार का अपनी कृषि प्रणाली के साथ संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। अमेरिकी trade benefits को प्राप्त करने के साथ-साथ भारतीय किसानों के हितों की रक्षा करना भी जरूरी है। इस दिशा में सरकार, उद्योग और किसान समुदाय सभी का संयुक्त प्रयास ही सफलता की कुंजी है।
भविष्य में भारत को अपने खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए निरंतर काम करना पड़ेगा, ताकि वैश्विक बाजार में बदलाव के बावजूद, भारतीय कृषि और खाद्य उद्योग मजबूत बना रहे।
यह जानकारी आपको भारत की कृषि और व्यापार नीति के वर्तमान परिदृश्य को समझने में मदद करेगी। आपकी इस विषय पर क्या राय है, नीचे कमेंट करें।
अंतिम शब्द
यह जरूरी है कि भारत अपने कृषि हितों को प्राथमिकता देते हुए वैश्विक हस्ताक्षरियों के साथ जब भी व्यापारिक समझौते करे, तो उसका संतुलित और दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित हो। तभी भारतीय किसान और उपभोक्ता दोनों सुरक्षित रहेंगे।
अधिक जानकारी के लिए पढ़ें: भारत सरकार का आधिकारिक पोर्टल और आर्थिक परिदृश्य पर वीकिपीडिया.