सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: आदिवासी महिला के वारिसों को संपत्ति में समान भागीदारी का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 17 जुलाई, 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसले में आदिवासी महिला के कानूनी उत्तराधिकारी को उनके नाना की जायदाद में समान भागीदारी का अधिकार सुनिश्चित किया है। इस ऐतिहासिक फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुरुषों के साथ महिलाओं का भी समान अधिकार है, और किसी भी परंपरा या रिवाज के नाम पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति संजय करोल और जॉयमाल्या बगची की पीठ ने कहा, “केवल पुरुषों को ही अपने पूर्वजों की संपत्ति पर अधिकार देना न तो तार्किक है और न ही कानून के अनुसार उचित। संविधान के अनुच्छेद 15(1), अनुच्छेद 38 और 46 का उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करना है।” कोर्ट ने यह भी माना कि महिलाओं के अधिकारों को अनदेखा करना लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देना है।

यह फैसला उन कानूनी उत्तराधिकारियों की अपील पर आया है जिन्होंने अपने नाना की जायदाद का विभाजन मांगा था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि परंपराओं को समय के साथ नहीं रुकना चाहिए और कानून की तरह ही परंपराएँ भी विकसित होनी चाहिए।

मामले में निम्न न्यायालयों ने महिला के उत्तराधिकारी के अधिकार को खारिज कर दिया था, यह कहते हुए कि आदिवासी समुदाय हिदू उत्तराधिकार अधिनियम से संचालित नहीं है और महिला के बच्चों को भी संपत्ति का हक नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को रद्द करते हुए कहा कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन संविधान के समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है।

यह फैसला महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण है।

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