सुप्रीम कोर्ट में याचिका: भोपाल गैस पीड़ितों की ‘गलत वर्गीकरण’ पर गंभीर आरोप

भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के अधिकार समूहों ने एक नई याचिका दाखिल कर दावा किया है कि इस जहरीली गैस से प्रभावित लोगों को गलत वर्गीकरण किया गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि गंभीर और स्थायी चोटें झेलने वाले पीड़ितों को ‘अस्थायी अक्षमता’ या ‘मामूली चोट’ के तहत वर्गीकृत किया गया है, जिसके कारण उन्हें समय से पहले पर्याप्त मुआवजा नहीं मिल पाया है। सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई जल्द ही होने की संभावना है।

याचिका में कहा गया है कि केंद्र सरकार को इन ‘गलत वर्गीकृत’ पीड़ितों की सही पहचान कर उन्हें भारत सरकार के 1985 के भोपाल गैस लीक राहत अधिनियम के तहत उचित श्रेणी में वर्गीकृत करने का निर्देश दिया जाए ताकि उन्हें सही मात्रा में मुआवजा व चिकित्सा सहायता प्राप्त हो सके।

गौरतलब है कि यह त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है, जिसमें 2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) संयंत्र से मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ था। इस घटना में हजारों लोगों की जान गई और लाखों प्रभावित हुए। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने इस त्रासदी को ‘भयानक’ करार दिया है।

याचिका में कहा गया है कि 2023 तक सुप्रीम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (अब डाउ कॉमिकल्स का हिस्सा) से संबंधित लंबी कानूनी लड़ाई का अंत करते हुए स्पष्ट किया कि पीड़ितों को मिलने वाले मुआवजे में कमी का जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है।

पीड़ित संगठनों का तर्क है कि कैंसर, किडनी फेलियर जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को ‘मामूली/अस्थायी चोट’ की श्रेणी में रखा गया है, जबकि इन बीमारियों को स्थायी विकलांगता माना जाना चाहिए था। संगठन ने यह भी जानकारी दी है कि 1974 के एक आंतरिक दस्तावेज में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि मिथाइल आइसोसाइनेट के सांस द्वारा सेवन के मामलों में ‘मामूली चोट के बावजूद गंभीर चोट की आशंका’ रहती है।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को निर्धारित है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता एस. मुरलीधर और अधिवक्ता प्रसन्ना एस. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

याचिका में कहा गया है कि आज भी 30 वर्षों बाद भी, सरकारी अस्पतालों के रिकॉर्ड बताते हैं कि गैस से प्रभावित 95% लोग स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें हृदय रोग, न्यूरोलॉजिकल विकार, गुर्दे और पाचन तंत्र की बीमारियां, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और अन्य पुरानी बीमारियां शामिल हैं। 1998 से 2016 के बीच भोपाल के बीएमएचआरसी अस्पताल में रिकॉर्ड दिखाते हैं कि गैस प्रभावित मरीजों में से लगभग आधे हृदय रोग से पीड़ित हैं और लगभग 60% फेफड़ों की समस्याओं से जूझ रहे हैं। केवल 2023 में ही, बीएमएचआरसी में गैस पीड़ितों की संख्या 2,06,016 थी।

यह मामला न केवल कानूनी लड़ाई का विषय है, बल्कि यह एक गंभीर स्वास्थ्य और अधिकार का प्रश्न भी है, जिसमें पीड़ितों को न्याय और उचित मुआवजा दिलाने की मांग की जा रही है।

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