शेख अबूबकर अहमद, जिनके आधिकारिक नाम कान्तापुरम ए. पी. अबूबकर मुस्लिमयार हैं और वे भारत के दसवें “ग्रैंड मुफ्ती” के रूप में सेवा दे रहे हैं, ने यमन में भारतीय नर्स निंमिषा प्रिया की फांसी रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह प्रयास उनके भारत के सर्वोच्च सुन्नी धार्मिक अधिकार के रूप में उनके पद, और इस्लामी कानूनी प्रथाओं जैसे दियाह (खून का बदला) के माध्यम से किया गया, जो एक विदेशी शरीआ अदालत में धार्मिक और राजनैतिक मध्यस्थता का दुर्लभ उदाहरण है।
शेख अबूबकर अहमद को फरवरी 2019 में अखिल भारतीय तंजीम उलामा-ए-इসলाम द्वारा “ग्रैंड मुफ्ती” चुना गया था। उनका जन्म केरल के कोझिकोड में कन्तापुरम में हुआ, और उन्होंने अपने दशकों पुराने नेतृत्व के जरिए धार्मिक शिक्षा, सामाजिक कल्याण और सार्वजनिक विमर्श में राष्ट्रीय पहचान बनाई। वे भारत की दो प्रमुख सुन्नी मुस्लिम संस्थाओं—ऑल इंडिया सुन्नी जमीयतुल उलामा और समस्ता केरल जमीयतुल उलामा—के महासचिव भी हैं। उनका यह पद, यद्यपि प्रतीकात्मक है, भारत में दक्षिण भारतीय विद्वानों में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है।
उनकी आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, शेख अबूबकर अहमद ने 1978 में केरल में स्थापित मर्क़ाज़ सक़ाफ़ती सुन्निया (जामिया मर्क़ाज़) के संस्थापक एवं कुलपति हैं। यह संस्था शिक्षा, सामाजिक सेवा और चैरिटेबल कार्यों का व्यापक नेटवर्क है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को जैसे वैश्विक मंचों पर भारतीय मुस्लिम विद्वानों का प्रतिनिधित्व किया है और अंतरधार्मिक सम्मेलनों में नियमित भाग लेते हैं। उनकी पहल—जैसे अन्तरराष्ट्रीय शांति सम्मेलन और मर्क़ाज़ द्वारा संचालित शैक्षिक कार्यक्रम—शिक्षा, धार्मिक विद्वता और समुदाय कल्याण से जुड़े हैं।
यमन में 2017 में यमनी नागरिक तलाल अब्दो महदी की हत्या के आरोप में मृत्युदंड पाने वाली केरल की निंमिषा प्रिया का मामला देशभर में चर्चा का केंद्र बना रहा। उनकी फांसी का कार्यक्रम 16 जुलाई 2025 निर्धारित था। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों ने तत्काल हस्तक्षेप किया। इनमें केरल कांग्रेस के विधायक चांडी उमम भी शामिल थे, जिन्होंने शेख अबूबकर अहमद से बातचीत कर उनके धार्मिक मध्यस्थता की अपील की।
शेख अबूबकर अहमद ने यमन के सुफी विद्वान शेख हबीब उमर बिन हाफ़िज से संपर्क किया, ताकि दियाह के इस्लामी सिद्धांत के आधार पर परिवार से माफी दिलवाने की कोशिश की जा सके। यमन की न्याय व्यवस्था, जो इस्लामी कानून पर आधारित है, में पीड़ित के परिवार को खून के बदले माफ करने का अधिकार है। शेख अहमद ने इस्लाम में मु forgivenा और मेल-मिलाप को प्रोत्साहित करने पर जोर देते हुए, कहा कि “इस्लाम में एक और कानून है, जिसमें पीड़ित का परिवार आरोपी को माफ कर सकता है।”
उनके प्रयासों के तहत, यमनी tribal नेताओं, न्यायिक अधिकारियों और धार्मिक विद्वानों के साथ संवाद के माध्यम से निंमिषा प्रिया की फांसी अस्थायी रूप से टाल दी गई है। अंतिम प्रयास में, शेख अबूबकर ने महदी के परिवार से अपील की है कि वे उन्हें माफ कर दें, और इस प्रक्रिया में लगभग 1 मिलियन डॉलर की खून का बदला (दियाह) देने को तैयार हैं। उनके करीबी सूत्रों का मानना है कि हबीब उमर की प्रतिष्ठा और प्रभाव यमन की समाज में फांसी रोकने में मदद कर सकते हैं।
कर्नथुर, कोझिकोड के निकट, 15 जुलाई 2025 को मीडिया से बात करते हुए, शेख अबूबकर अहमद ने कहा कि उन्होंने यमनी विद्वानों से निंमिषा के मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध किया है। “हमें यमनी अधिकारियों से आधिकारिक पुष्टि मिली है कि हमारी अपील के आधार पर निंमिषा प्रिया की फांसी स्थगित कर दी गई है। हम सभी उसकी सुरक्षित रिहाई के लिए प्रार्थना करें,” उन्होंने कहा।
यह पूरी घटना एक महत्वपूर्ण धार्मिक और मानवीय सफलता मानी जा रही है, जो दिखाती है कि धार्मिक नेतृत्व और मध्यस्थता किस तरह मानव जीवन को बचाने में मदद कर सकती है।