परिचय: भारत में Relationship Farming का महत्व
दूध भारत में सिर्फ एक पोषण स्रोत ही नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक परंपरा भी है। यह व्यवसाय से कहीं अधिक, एक जीवनशैली और सामाजिक संबंध का प्रतीक है। भारतीय mythology में Kamadhenu जैसी दिव्य गाय का उल्लेख है, जो परिपूर्णता और समृद्धि का प्रतीक है। इतिहास साक्ष्यों से पता चलता है कि लगभग 2,500 BCE में गुजरात जैसे क्षेत्र में भी दूध का उपयोग होता था। स्वतंत्रता के वक्त भारत में दूध की भारी कमी थी, लेकिन आज हम विश्व के सबसे बड़े दूध उत्पादक बन गए हैं। यह सफलता केवल तकनीकी उन्नति का परिणाम नहीं है, बल्कि उसमें किसानों के साथ गहरे संबंधों की भी अहम भूमिका है।
भारत में डेरी उद्योग की विशेषता: संबंध आधारित मॉडल
आधुनिक दौर में जब बड़े पैमाने पर कृषि और उद्योगिक मॉडल अपनाए जा रहे हैं, तब भी भारत का दुग्ध व्यवसाय अभी भी अपने पारंपरिक और संबंध-आधारित ढांचे में ही चल रहा है। अधिकतर किसानों के पास एक या दो गायें या भैंसें हैं, और उनके जीवन का मुख्य आधार कृषि ही है। खेती मौसमी है, और फसल के समय ही मुख्य आय होती है। इसके बीच दूध का उत्पादन रोजाना होता है और इसे स्थानीय बाजार में बेचकर परिवार रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करता है।
इस संबंध-आधारित मॉडल का सबसे बड़ा कारण इसकी सामाजिक प्रकृति है। दूध की खरीद-फरोख्त का यह तरीका छोटी, विकेंद्रीकृत स्तर पर चलता है। यह मॉडल किसानों के साथ सीधे जुड़ाव और भरोसे पर आधारित है। इससे किसानों को आर्थिक स्थिरता मिलती है, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है।
सहकारी प्रणाली का योगदान और उसकी विशेषता
1970 के दशक में भारतीय दूध सहकारी समितियों का जन्म हुआ, जिन्होंने किसानों के साथ मजबूत संबंध बनाना शुरू किया। ये संस्थान किसानों का उत्पादन खरीदने के साथ ही उनकी समस्याओं का समाधान भी करते हैं। इस तरह का संगठनात्मक ढांचा, जिसमें किसान और बाजार दोनों के बीच भरोसे का रिश्ता होता है, भारतीय डेरी उद्योग की सफलता का आधार है। जब निजी कंपनियों ने बाजार में कदम रखा, तो उन्होंने भी इस संबंध-आधारित दृष्टिकोण को अपनाया।
यह संबंध-आधारित खेती प्रणाली केवल व्यवसायिकता नहीं है, बल्कि एक दीर्घकालिक साझेदारी है। किसान अपने सोर्स के रूप में अपने पशु को देखते हैं, और व्यवसाय को अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन का हिस्सा मानते हैं। इस प्रकार, यह मॉडल सामाजिक और आर्थिक दोनों पहलुओं से संतुलित है।
Relationship Farming क्यों जरूरी है?
यह मॉडल छोटे खेतिहर परिवारों के लिए बहुत जरूरी है। बड़ी खेतों और औद्योगिक मॉडल की तुलना में, यह प्रणाली अधिक टिकाऊ और भरोसेमंद है। भारत में केवल 54 प्रतिशत दूध का उत्पादन बाजार की मात्रा में उपलब्ध होता है, बाकी घरेलू खपत और स्थानीय अर्थव्यवस्था में ही रहता है। इस कारण, relationship farming ग्राम्य जीवन का अभिन्न हिस्सा है।
इसके चलते, यह प्रणाली किसानों की आय स्थिरता, समुदाय की स्थिरता और कृषि क्षेत्र की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कृषि और डेयरी क्षेत्र में ऐसे संबंध-आधारित मॉडल की ओर बढ़ना आवश्यक है। यह न सिर्फ़ किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, बल्कि पूरे क्षेत्र की सामाजिक स्थिरता भी सुनिश्चित करता है।
भविष्य की दिशा: संबंध-आधारित मॉडल का विस्तार
आने वाले वर्षों में, भारत सरकार और विभिन्न संस्थान इस संबंध-आधारित मॉडल को और मजबूत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। सरकार की नीतियों में छोटी किसानों को समर्थन, उनके उत्पादन का मूल्यांकन और बाजार में पहुंच सुनिश्चित करना शामिल है। साथ ही, डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग कर किसान-प्रबंधन को आसान और पारदर्शी बनाया जा रहा है।
यह कदम न केवल किसानों के जीवन में सुधार लाएंगे, बल्कि स्थायी आजीविका और सामाजिक समरसता की दिशा में भी मदद करेंगे। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस मॉडल का निरंतर प्रचार और समर्थन भारतीय किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा और भारतीय डेयरी को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाएगा।
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
Relationship farming का सबसे बड़ा लाभ है—यह छोटे किसानों को अपने उत्पादन का नियंत्रण और भरोसे के साथ व्यापार करने का अवसर देता है। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होती है, बल्कि वे अपने परिवार का भला भी कर सकते हैं। यह मॉडल सामाजिक रिश्तों को मजबूत करता है और ग्रामीण जीवन को स्थिर बनाता है।
एक विश्लेषक के अनुसार, यदि भारत इस संबंध-आधारित ढांचे को पूरी तरह से अपनाए, तो यह देश के कृषि और डेयरी क्षेत्र की स्थिरता के साथ-साथ ग्रामीण समुदायों की आर्थिक स्वतंत्रता को भी मजबूत करेगा। यह प्रक्रिया छोटे किसान और उनके परिवारों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगी।
निष्कर्ष: भारतीय डेयरी का भविष्य
भारत की डेयरी उद्योग की सफलता का राज इसकी मजबूत सामाजिक संरचना और संबंध आधारित मॉडल में निहित है। यह मॉडल छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाने और उन्हें स्थायी आय का स्रोत प्रदान करने का माध्यम है। कोरोना महामारी और वैश्विक बाजार में बदलाव के बावजूद, भारतीय डेयरी सेक्टर इस गहरे संबंधों के आधार पर ही अपनी मजबूती बनाए रख पा रहा है।
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अधिक जानकारी के लिए, आप पीआईबी और Wikipedia जैसी विश्वसनीय स्रोतों से पढ़ सकते हैं। साथ ही, मंत्रालय की ट्विटर अपडेट पर भी नजर डालें।