परिचय: भारत में डेयरिंग का सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व
भारत में दूध और डेयरिंग का संबंध केवल व्यवसायिक गतिविधि नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा भी है। दूध को प्राचीन समय से एक पूज्य व पूरक आहार माना जाता है। भारतीय संस्कृति में Kamadhenu जैसी दिव्य गायें भी हैं, जो समृद्धि और पूर्णता का प्रतीक मानी जाती हैं। इसके साथ ही, पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि लगभग 2500 BCE से ही गुजरात जैसे क्षेत्रों में दूध का उपयोग हो रहा था।
वर्तमान में, भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, जहां लाखों छोटे किसान जुड़े हैं। इस परंपरा को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि देश में डेयरिंग क्यों और किस तरह से सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर एक अनूठी व्यवस्था बन गई है।
भारतीय मिल्क सेक्टर का ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान स्थिति
स्वतंत्रता के समय का दूध संकट और उसकी स्थिति
स्वतंत्रता के समय भारत में दूध की भारी कमी थी। सालाना उत्पादन केवल 17 से 21 मिलियन टन के बीच था और प्रति व्यक्ति दूध का स्तर मात्र लगभग 120 ग्राम था। यह स्थिति देश के खाद्य सुरक्षा और आजीविका के लिए चिंता का विषय थी।
1930 और 1940 के दशक में, भारतीय सरकार और समाज ने दूध की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए। लेकिन जब तक 1970 के दशक में White Revolution यानी जय जवान जय किसान योजना शुरू हुई, तब तक स्थिति में खासा बदलाव नहीं आया था।
White Revolution और उसकी भूमिका
White Revolution ने भारत को दूध उत्पादन में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस योजना के तहत, बड़े पैमाने पर डेयरी फार्म, कोऑपरेटिव्स, और सरकारी योजनाएं विकसित की गईं। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत अब विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक बन गया है।
यह परिवर्तन सिर्फ उत्पादन का मामला नहीं था, बल्कि यह ग्रामीण जीवन और किसानों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाने का भी एक माध्यम था। इस कदम से देश में दूध उत्पादन में वृद्धि हुई और प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता भी बढ़ी, जो वर्तमान में करीब 450 ग्राम से अधिक हो चुकी है।
डेयरिंग की सामाजिक और आर्थिक संरचना
छोटे किसान और उनका महत्व
भारत में डेयरिंग का मॉडल अधिकतर छोटे किसानों पर आधारित है। ये किसान एक या दो गाय या भैंस रखते हैं। उनके लिए कृषि ही मुख्य आय का स्रोत है, परंतु वह मौसमी और अस्थिर होता है। फसल की कटाई के मौसम के बाद उनके पास नकदी की कमी हो जाती है। ऐसे समय में दूध की बिक्री उनके लिए मासिक आय का स्थायी जरिया बन जाती है।
मध्यम और छोटी मात्रा में दूध का हर रोज़ उत्पादन उनके जीवन चक्र का हिस्सा है, जो उन्हें वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है।
संबंध आधारित खेती का महत्व
भारत में डेयरी व्यवसाय का मूल आधार है ‘संबंध आधारित’ मॉडल। यहाँ बड़ा उद्योग आधारित नहीं, बल्कि परस्पर विश्वास और दीर्घकालिक जुड़ाव पर आधारित है।
यह मॉडल किसान और प्रक्रिया करने वालों के बीच दीर्घकालिक संबंध बनाता है, जिससे भरोसेमंद आपूर्ति और पारस्परिक लाभ सुनिश्चित होता है। यह परंपरा भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का केंद्र है और इसकी सफलता में सहकारी संस्थान और स्थानीय नेटवर्क का बड़ा योगदान है।
संबंध आधारित खेती के लाभ और चुनौतियाँ
- स्थायी आय: डेयरी से प्राप्त नियमित नकदी से किसान अपनी दैनिक जरूरतें पूरी कर सकते हैं।
- सामाजिक संबंध मजबूत बनाना: किसान और बाजार के बीच विश्वास का रिश्ता मजबूत होता है।
- स्थानीय आर्थिक विकास: यह मॉडल गाँव के आर्थिक तंत्र को मजबूत बनाता है।
हालांकि, इस मॉडल को कुछ चुनौतियों का सामना भी है। जैसे— उपभोक्ता और उत्पादक के बीच उचित भुगतान का निर्धारण, पशु स्वास्थ्य की देखभाल, और बाजार में प्रतिस्पर्धा। इन चुनौतियों का सामना सहकारी संस्थानों और सरकारी योजनाओं के माध्यम से किया जा रहा है।
आगे का रास्ता: प्यार और भरोसे पर आधारित डेयरिंग
भारत में डेयरिंग की यह परंपरा न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक संबंधों का भी प्रतीक है। यह मॉडल देश की विविधता और सामाजिक जटिलताओं को समझते हुए विकसित हुआ है। इस संबंध आधारित खेती का भविष्य भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सरकार और निजी क्षेत्र दोनों को मिलकर इस परंपरा को और सशक्त बनाने के लिए नीतियों और प्रयासों को जारी रखना चाहिए।
निष्कर्ष
भारत का डेयरिंग मॉडल हमारी सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है, जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से टिकाऊ है। इसमें छोटे किसान, पारंपरिक संबंध और स्थानीय परंपराएं शामिल हैं, जो विश्व बाजार के प्रभावों से अलग हैं। इस प्रणाली को समझना और समर्थन देना आवश्यक है, ताकि हमारे ग्रामीण क्षेत्र मजबूत और समृद्ध बने रहें।
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