MGNREGS डिजिटल उपस्थिति प्रणाली का दुरुपयोग: केंद्र का राज्यों को चेतावनी

लगभग चार वर्षों से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) के श्रमिकों के लिए डिजिटल उपस्थिति प्रणाली को लागू किए जाने के बाद तथा इसे अनिवार्य किए हुए तीन साल हो चुके हैं, सरकार ने अब खुलासा किया है कि इस प्रणाली का दुरुपयोग किया जा रहा है। राष्ट्रीय मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम (NMMS) प्लेटफार्म का इस्तेमाल कई तरीकों से किया जा रहा है, जिनसे इसकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंच रहा है और सार्वजनिक धन का potential misuse हो रहा है। इसके रोकथाम के लिए सरकार ने अब चार परतों वाली मैनुअल निगरानी व्यवस्था भी जोड़ दी है।

8 जुलाई, 2025 को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस मुद्दे पर राज्यों को 13 पृष्ठ का नोटिस जारी किया। मंत्रालय के अनुसार, NMMS का कम से कम सात तरीके से दुरुपयोग किया जा रहा है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

– श्रमिकों की जियो-टैग्ड तस्वीरें दिन में दो बार अपलोड करना, पहली बार जब वे काम पर आते हैं और दूसरी बार उनके शिफ्ट के अंत में। केवल 20 या उससे कम श्रमिकों वाले साइटों पर ही दूसरी तस्वीर अपलोड करने में छूट है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, कई मामलों में अप्रासंगिक या संबंधित नहीं तस्वीरें अपलोड की जा रही हैं।
– लाइव काम की तस्वीरों के बजाय, फोटो-टू-फोटो कैप्चरिंग का प्रयोग किया जा रहा है।
– वास्तविक श्रमिकों की संख्या और रिकॉर्ड में दर्शाई गई संख्या में मेल नहीं खाता।
– कई साइटों पर श्रमिकों की लिंग संरचना में भी असमानता पाई गई।
– एक ही श्रमिक की तस्वीर कई muster roll में बार-बार दिखाई दे रही है।
– सुबह और दोपहर की तस्वीरों में श्रमिकों की संख्या में भिन्नता।
– दोपहर के सत्र में तस्वीरें अपलोड न होना।

मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इन तस्वीरों और श्रमिकों की उपस्थिति का सत्यापन ग्राम पंचायत, ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायत स्तर पर, 100% सत्यापन का लक्ष्य रखा गया है। वहीं, ब्लॉक स्तर पर 20% रैंडम सत्यापन, जिला स्तर पर 10% और राज्य स्तर पर 5% तस्वीरों का सत्यापन अनिवार्य है।

इसके अलावा, सरकार ने अब मजदूरी बिल बनाने से पहले muster rolls में संपादन करने की अनुमति दी है, जो पहले केवल जिला कलेक्टर ही कर सकते थे। हालांकि, यह प्रक्रिया भी बहुत ही कम मामलों में ही की जाती थी।

LibTech India के वरिष्ठ शोधकर्ता चक्रधर बुद्धा ने कहा कि इस प्रणाली का उद्देश्य भ्रष्टाचाररोधी और टेक्नोलॉजी-आधारित प्रणाली होना था, लेकिन अब यह पूरी तरह से फ्रंटलाइन कर्मचारियों की मैनुअल जांच पर निर्भर हो गई है। उन्होंने कहा, “यह डिजिटल उपस्थिति प्रणाली का मूल उद्देश्य ही खत्म कर देता है।” बुद्धा ने कहा कि सरकार के निर्देशों का पालन करना मुश्किल होगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बड़ी संख्या में MGNREGA कार्य होते हैं। गर्मियों के महीने में, विशेष रूप से आदिवासी इलाकों में, रोजाना हजारों NMMS तस्वीरें बनती हैं, जिनका सत्यापन कर्मचारियों की क्षमता और तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण संभव नहीं हो पाता।

यह रिपोर्ट 14 जुलाई, 2025 को रात 10:30 बजे प्रकाशित हुई।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *