मार्केटिंग का खोया हुआ दिल: क्या वाकई हम भावनाओं से दूर हो गए हैं?

मार्केटिंग का असली चेहरा कहाँ छुप गया है?

बीते साल की बात है, जब एक वेलनेस प्लेटफॉर्म Yes Madam द्वारा एक कथित लीकेड HR मेल ने सनसनी मचा दी थी। इस मेल में दिखाया गया था कि कैसे कंपनी ने दो कर्मचारियों को निकाल दिया, क्योंकि उन्होंने हाई स्ट्रेस रिपोर्ट किया था। यह मेल कंपनी के स्टंट का हिस्सा था, जो उनके तनाव रोकने की सर्विस को प्रमोट करने के लिए बनाया गया था। लेकिन इसका असर उल्टा पड़ा और इसे बहुत ही असंवेदनशील माना गया। इस घटना ने कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचाया और लोग सवाल करने लगे कि क्या वास्तव में मार्केटिंग अब भी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी है या नहीं।

विपणन में बढ़ रहा है भावनात्मक शून्यता

यह कोई पहली घटना नहीं थी। भारतीय विज्ञापन उद्योग अब एक पहचान संकट का सामना कर रहा है। वह दिखने में तो अत्यधिक टारगेटेड और AI-आधारित हो रहा है, लेकिन उसकी हृदयहीनता उसे असमंजस में डाल रही है। विज्ञापन, जो पहले लोगों के मन में जगह बना लेते थे, अब ट्रेंड के साथ-साथ जल्दी गायब हो जाते हैं। यह उद्योग अपने Efficiency (प्रभावशीलता) और टारगेटिंग के चक्कर में अपने भावनात्मक तत्वों को खो रहा है।

कितनी जरूरी है इमोजनल इंटेलिजेंस?

विश्लेषकों का मानना है कि ग्राहक अब सिर्फ़ उत्पाद या सेवा नहीं, बल्कि ब्रांड के प्रति अपनी भावनाएँ भी व्यक्त करना चाहते हैं। कंपनी के एक्सपर्ट्स का कहना है, “Consumers today expect brands not only to understand their habits but to reflect their values.” यानी, आज के ग्राहक चाहते हैं कि ब्रांड उनकी भावनाओं को समझे और उनके मूल्यों के साथ मेल खाएं। यही कारण है कि इमोजनल इंटेलिजेंस यानी भावनात्मक बुद्धिमत्ता का महत्व पहले से कहीं ज्यादा हो गया है।

बजट और डेटा का दबाव, क्या भावनाएँ पीछे रह जाती हैं?

विपणन विशेषज्ञ कहते हैं कि आज कंपनियों का ध्यान अधिकतर डेटा और ROI (रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट) पर केंद्रित हो गया है। इस प्रतिस्पर्धा में, भावना पर आधारित स्टोरीटेलिंग या कनेक्शन बनाना कम हो गया है। RBI और दूसरे वित्तीय संस्थान भी अपने विज्ञापन में जल्दबाजी में निवेश कर रहे हैं, फिर भी वे अपने ग्राहकों के साथ गहरे संबंध बनाने में असमर्थ हो रहे हैं।

फिर भी, कुछ ब्रांड्स हैं जो बदलाव की राह पर

कुछ ब्रांड्स ने अपनी रणनीतियों में बदलाव लाकर इस संकट का सामना किया है। Nikhil Rao, जो Mars Wrigley India के CMO हैं, कहते हैं, “अब ब्रांड को केवल बिक्री के लिए ही नहीं, बल्कि लोगों के दिलों में जगह बनाने के लिए भी काम करना चाहिए.” उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे उनके ब्रांड की छोटी से विज्ञापन कैम्पेन भी लोगों के दिल को छू जाती हैं। उनका मानना है कि हर मार्केटिंग अभियान का उद्देश्य ग्राहकों से जुड़ना है, न कि सिर्फ़ आंकड़ों को छूना।

डिजिटल युग में ब्रांड का असली मूल्य क्या है?

डिजिटल युग में, जहां हर चीज़ ट्रेंड्स के हिसाब से बदल रही है, वहां मुख्य सवाल उठता है: “ब्रांड्स अपनी पहचान कैसे बनाए रखें?” विकिपीडिया के अनुसार, एक मजबूत ब्रांड उस भावनात्मक कनेक्शन से बनता है, जिसे वे अपने ग्राहकों के साथ स्थापित करते हैं।

विषय पर विचार करते हुए, वाहिनी सनी, एक प्रमुख मार्केटिंग कंसल्टैंसी की प्रमुख, कहती हैं, “क्लासिक विज्ञापन जो भावनाओं को जगाते हैं, वे ही लंबे समय तक टिकते हैं। इसलिए, ब्रांड को अपनी कहानी सही ढंग से कहनी चाहिए।” यूट्यूब और सोशल मीडिया पर भी ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां चैनल्स ने अपनी कहानियों से दर्शकों का दिल जीत लिया।

अंत में—भावना और व्यवसाय का मेल

सारांश यह है कि, हालांकि तकनीक और डेटा ने विपणन प्रक्रिया को आसान बना दिया है, लेकिन सबसे जरूरी है कि हम अपनी मानवीय भावनाओं को न भूलें। सफल ब्रांड वही होते हैं, जो अपने ग्राहकों के दिलों को छू जाते हैं। यह जागरूकता ही उन्हें प्रतिस्पर्धा में विशिष्ट बनाती है।

इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करके जरूर बताएं। क्या वास्तव में विपणन में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का फिर से उदय हो सकता है? या फिर हम अभी भी केवल आंकड़ों की दुनिया में ही फंसे रहेंगे?

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