मीडिया और मार्केटिंग का सबसे बड़ा नुकसान: क्या हम भावनात्मक जुड़ाव खो रहे हैं?

मीडिया और मार्केटिंग की नई समस्याएँ: क्या हम भावनात्मक तत्व भूल रहे हैं?

बीते साल के अंत में, एक सनसनीखेज़ घटना ने मीडिया और मार्केटिंग की दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। लीक हुए HR ईमेल ने दिखाया कि कैसे एक वेलनेस प्लेटफ़ॉर्म, Yes Madam, ने अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की प्रक्रिया को प्रचार के रूप में प्रयोग किया। इस ईमेल का मकसद तनाव से राहत पाने की सेवाओं को प्रमोट करना था, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया इतनी तेज़ और कठोर थी कि कंपनी को भारी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

यह घटना कहीं न कहीं उस समस्या की ओर संकेत करती है, जो आज की मार्केटिंग और मीडिया के चेहरे पर हावी हो गई है — यानी, भ्रमित होना और भावनात्मक जुड़ाव की कमी। आज की डिजिटल दुनिया में, जहाँ तकनीक का वर्चस्व है, वहाँ ब्रांड्स अपने ग्राहकों से जुड़ने के लिए सिर्फ तकनीकी रणनीतियों का ही सहारा ले रहे हैं, परन्तु भावनात्मक तत्व गायब होते जा रहे हैं।

मीडिया और विज्ञापन की वर्तमान स्थिति: भावनाओं का सूखना

आधुनिक विज्ञापन उद्योग में देखिए तो यह प्रवृत्ति स्पष्ट हो जाती है। अक्सर आप विज्ञापनों को ट्रेंड, AI-आधारित विश्लेषण और डेटा के आधार पर बनते देखते हैं। परंतु, अंदर से यह अधिकांश विज्ञापन खोखले हैं और उनमें वह इंसानी स्पर्श नहीं है जो दर्शकों को छू सके। ये विज्ञापन अक्सर अचानक ट्रेंड के हिसाब से दिखते हैं और फिर गायब हो जाते हैं, जैसे किसी फुलझड़ी की तरह।

इसे कबूलना पड़ेगा कि इस प्रक्रिया का परिणाम है, ब्रांड्स का Emotionally Hollow होना। विशेषज्ञ कहते हैं कि विज्ञापन में यदि भावनात्मक कनेक्शन न हो, तो वह लंबे समय तक यादगार नहीं रहता।विज्ञापन का इतिहास भी यही सिखाता है कि सबसे सफल विज्ञापन वह होता है, जो लोगों की भावनाओं को छू सके।

आधुनिक मार्केटिंग में भावना की भूमिका और खतरा

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कंस्यूमर और रिटेल सेक्टर की टॉप कंपनीज़ इस बात को समझ रही हैं कि ग्राहक सिर्फ उत्पाद नहीं, बल्कि उनके मूल्य और भावनात्मक जुड़ाव चाहते हैं। Isabelle Allen, जो KPMG International की ग्लोबल हेड हैं, कहती हैं, “खपत करने वाले आज बस व्यक्तिगत नहीं, बल्कि संवेदनशील हैं। वे चाहते हैं कि ब्रांड्स न सिर्फ उनकी आदतों को समझें, बल्कि उनके मूल्यों को भी प्रतिबिंबित करें।”

लेकिन, इसी भावना को बनाए रखने के प्रयास में, उद्योग अक्सर अपने आप को भावनात्मक रूप से अधमरा महसूस करता है। वित्तीय सेक्टर में, उदाहरण के तौर पर, ज्यादातर मार्केटिंग केवल संख्याओं और चार्ट तक सीमित रहती है। संदीप वलुंज, जिन्हें मोटिलाल ओसवाल ग्रुप में ग्रुप चीफ मार्केटिंग ऑफिसर कहा जाता है, कहते हैं कि, “वहाँ फियर, इच्छाएं और अपराधबोध जैसे भावनात्मक पहलू कब खत्म हो गए, पता ही नहीं चलता। हम अब भी इनको लोगों से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, पर असल में हमें इस बात को समझना होगा कि मानवता के साथ जुड़ना ज़्यादा जरूरी है।“

ब्रांड्स का भावनात्मक संबंध बनाना ही है सफलता की कुंजी

सामान्य उपभोक्ता ब्रांड्स भी इस बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। Nikhil Rao, जो Mars Wrigley India के सीएमओ हैं, कहते हैं, “आज का समय ऐसी मार्केटिंग का है, जिसमें क्रिएटिविटी के साथ-साथ व्यापारिक उद्देश्य भी हैं। हमारा काम सिर्फ प्रचार करना नहीं, बल्कि उस भावना को बनाना है, जो consumers को long-term loyal बनाता है।“

उनकी टीम अपने ब्रांड की कहानी को मजबूती से प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है। उदाहरण के तौर पर, कभी ₹1 की gomme को भी कंपनी अपने ब्रांड का प्रतीक बनाती है, क्योंकि उसमें उनकी विश्वसनीयता और गुणवत्ता का संदेश छुपा है।
लेकिन, कई मार्केटर इस सीमा से ऊपर नहीं जा रहे हैं। Asparsh Sinha, जो एक स्वतंत्र ब्रांड डिज़ाइन कंसल्टेंसी के पार्टनर हैं, का कहना है, “जब हर चीज़ का डैशबोर्ड पर आँकड़ों के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है, तो ब्रांड को एक Utility की तरह देखा जाने लगता है। इस स्थिति में, डेटा का सही अर्थ समझना और उसका सही उपयोग करना जरूरी है।“

आधुनिक मार्केटिंग की चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

क्लाइंट्स की नर्वसनेस, खर्च का तर्कसंगत विश्लेषण और रिटर्न का दबाव आज मार्केटिंग को अधिक फोकस्ड बनाता है।विषेश साहनी, जो White कंपनी के CEO हैं, बताते हैं कि अब कंपनियों का फोकस “सांस्कृतिक समझ” पर है। “जनरेशन Z अपने ध्यान आकर्षित करने वाले विज्ञापनों से नहीं, बल्कि वास्तविकता और प्रामाणिकता से जुड़ना चाहता है। इसी को ध्यान में रखते हुए, हम ऐसे अभियानों पर काम कर रहे हैं, जो न सिर्फ ध्यान खींचें, बल्कि दिलों को छू जाएं।”

इसे हम यूट्यूब, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर भी देख सकते हैं, जहाँ कंपनियाँ कनेक्टिविटी और ऑडियंस की आकांक्षाओं को समझ रही हैं।

निष्कर्ष: भावनाओं का पुनर्जागरण अपने समय की जरूरत

मीडिया और विपणन की दुनिया में यह बदलाव जरूरी है। तकनीक ने जहां उत्पादों और सेवाओं को अधिक प्रभावी बनाया है, वहीं, इनके साथ मानवता और भावना का समावेश भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यदि हम आज के दौर में ब्रांड्स की पहचान बनाना चाहते हैं, तो हमें यह समझना होगा कि भावनात्मक जुड़ाव ही वह चाबी है जो लम्बे समय तक याद रह जाती है।

आज का युग डिजिटल और AI-आधारित होने के साथ-साथ, इंसानियत और संवेदनशीलता को भी बढ़ावा देने का है। तभी जाकर हम मार्केटिंग का मूल उद्देश्य—“सिर्फ बेचने” से “संबंध बनाने” तक—पूरा कर पाएंगे।

आपकी इस विषय पर क्या राय है? नीचे कमेंट करें और इस चर्चा में भाग लें।

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