परंपरागत संतूर कला का अस्तित्व खतरे में
सड़क किनारे या छोटे कार्यशालाओं में बैठकर हाथ से बनाये जाने वाले संतूर वाद्य की कला पिछले कई सालों में धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत का यह अनमोल हीरा, जो centuries से लोक संगीत का अभिन्न हिस्सा रहा है, अब अंतिम दौर में है।
यह पारंपरिक वाद्य, जिसे ट्रेपेज़ियम आकार का और रुकसत (dulcimer) जैसा दिखता है, अपने क्रिस्टल जैसी मधुर धुनों के लिए जाना जाता है। इसे मलटों से बजाया जाता है और इसकी ध्वनि इतनी प्यारी होती है कि संगीत प्रेमी इसे सुनकर मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
संतूर की ऐतिहासिक यात्रा और कश्मीर में उसकी भूमिका
माना जाता है कि संतूर का उद्गम प्राचीन पेर्शिया (फ़ारसी) से हुआ है। 13वीं या 14वीं सदी में यह वाद्य मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के रास्ते भारत पहुंचा। खासकर कश्मीर में इसकी एक अलग पहचान बनी। यहाँ यह पुराणिक, सूफी और लोक गीतों में सदियों से प्रयोग होता रहा है।
सांस्कृतिक इतिहासकारों का मानना है कि इस वाद्य का यहाँ का संगीत और साहित्य में बहुत अहम स्थान है। सूफी कवि और संगीतकार अपनी कविताओं को इस वाद्य के साथ प्रस्तुत करते रहे हैं।
गुलाम मोहम्मद जब्ब और उसकी विरासत
गुलाम मोहम्मद जब्ब, कश्मीर के अंतिम शिल्पकार हैं, जिनके पास दर्जनों पीढ़ियों से चली आ रही संतूर बनाने की कारीगर कला है। उनके कार्यशाला में जाकर आप उन्हें अपने हाथों से बने इस वाद्य को बनाते हुए देख सकते हैं। उनका परिवार इस धरोहर को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है।
उनकी कार्यशाला एक छोटी सी जगह है, जिसमें पुरानी लकड़ी और जंग लगे लोहे के औजार हैं, जो इस कला के अंत को सूचित करते हैं।
संगीत जगत में उनके नाम का महत्व बहुत है। कई प्रसिद्ध सूफी और लोक कलाकार उनके बनाये हुए संतूर का इस्तेमाल करते हैं। इन वाद्यों की खासियत यह है कि इन पर बहुत ही मेहनत और लगन से काम किया गया होता है।
आधुनिकता और बदलते संगीत के बाजार
हालांकि यह कला सदियों पुरानी है, लेकिन बदलते समय के साथ इसकी मांग में कमी आई है। मशीन से बने वाद्य, जो कम कीमत और तेज़ी से बनते हैं, ने इस पारंपरिक हस्तकला को कमजोर कर दिया है। युवा पीढ़ी अब पारंपरिक संगीत में अधिक रुचि नहीं दिखाती, बल्कि हिप हॉप, रैप और इलेक्ट्रॉनिक म्यूजिक को तरजीह देती है।
शबीर अहमद मीर, जो कश्मीर के एक प्रसिद्ध संगीत शिक्षक हैं, कहते हैं, “नई संगीत शैलियों ने युवाओं की रूचि को बदल दिया है, और पारंपरिक वाद्यों की मांग बहुत कम रह गई है।” इस कारण से, न तो अब इस कला को सीखने वाले कारीगर हैं और न ही इस पर आधारित बाजार।
इस बदलाव का असर सिर्फ सांस्कृतिक विरासत पर ही नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के सांगीतिक परंपराओं पर भी पड़ा है।
सांस्कृतिक संरक्षण की आवश्यकता
यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि संतूर जैसे पारंपरिक वाद्य कला का अस्तित्व खतरे में है। सरकार और सांस्कृतिक संस्थान इस विरासत को संरक्षित करने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन स्थायी समाधान अभी भी दूर है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इस कला में लगे कारीगरों की संख्या घटती जा रही है। कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि उचित प्रचार-प्रसार और वित्तीय मदद न मिली, तो यह कला पूरी तरह से समाप्त हो सकती है।
संगीत प्रेमी और सांस्कृतिक संरक्षण कार्यकर्ता इस विरासत को जिंदा रखने के लिए जागरूकता अभियान चला रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे पर बहस हो रही है, जिससे नई पीढ़ी को इस कला की अहमियत समझने का मौका मिल रहा है।
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय प्रयास
देश में कई सरकारी योजनाएं और पहलें इस तरह की पारंपरिक कलाओं को बचाने का प्रयास कर रही हैं। भारतीय संगीत और सांस्कृतिक मंत्रालय ने कश्मीर की संतूर बनाने की कला को संरक्षित करने के लिए प्रमाणपत्र प्रणाली और प्रशिक्षण केंद्र शुरू किए हैं।
इसके अलावा, कई स्वयंसेवी संस्थान युवा कारीगरों को ट्रेनिंग दे रहे हैं, ताकि इस कला की जड़ें मजबूत रह सकें।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी म्यूज़िक फेस्टिवल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इस पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसमें नए कलाकार इजाफा कर रहे हैं। इससे उम्मीद है कि संतूर और इसकी शैख़ियत फिर से जीवित हो सकती है।
आखिरी सवाल: क्या रहेगा इस विरासत का भविष्य?
यह सवाल अभी अनुत्तरित है कि क्या संतूर जैसी विधा अपने अंतिम चरण में पहुंच गई है। लेकिन यह निश्चित है कि यदि हम इसकी परंपरा को समझते हुए संरक्षण न करें, तो हमारी सांस्कृतिक विरासत का एक अनमोल भाग इतिहास के कूड़ेदान में चला जाएगा।
यह आवश्यक है कि सरकार, समाज और कला प्रेमी मिलकर इस विरासत को जीवित रखने के प्रयास करें। तभी हम आने वाली पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक विविधता का तोहफा दे पाएंगे।
संतूर की कहानी हमें सिखाती है कि परंपरा और कला का संरक्षण तभी संभव है जब हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें।
आपकी इस विषय पर क्या राय है? नीचे कमेंट करें और इस ऐतिहासिक कला को बनाए रखन में अपना योगदान दें।