कश्मीर में तेज गर्मी ने बढ़ाई स्वास्थ्य और फसल की चिंताएँ, क्या होगी ठंडक की उम्मीद?

कश्मीर में रिकॉर्ड तोड़ तेज गर्मी और उसके प्रभाव

हिमालय की इस खूबसूरत घाटी ने इस बार अपने इतिहास में सबसे अधिक गर्मी का अनुभव किया है। तापमान ने 70 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए 37.4°C तक पहुंच गया है। यह औसतन मौसमी तापमान से कम से कम 7°C अधिक है, जो क्षेत्र के मौसम के पैटर्न में बड़े बदलाव का संकेत है। इस अप्रत्याशित गर्मी ने न केवल पर्यटकों और स्थानीय लोगों को परेशान किया है, बल्कि किसानों पर भी बुरा असर डाला है।

प्रभाव और चुनौतियाँ: स्वास्थ्य और खेती पर असर

गर्मी की इस तीव्रता ने स्वास्थ्य संकट को भी जन्म दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार बढ़ती गर्मी से हीट स्ट्रोक, dehydration और अन्य गर्मी से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस बारे में चेतावनी जारी की है। वहीं, खेती-बाड़ी भी चरम स्थिति में पहुंच चुकी है। अधिकांश किसान पानी की भारी मांग वाले फसलों जैसे धान, मक्का आदि पर निर्भर हैं, लेकिन पानी की कमी और तापमान में बढ़ोतरी से फसलों को नुकसान हो रहा है।

खराब मौसम का स्थानीय जीवन पर प्रभाव

कश्मीर के लोगों के लिए यह बदलाव चिंता का विषय बन चुका है। चर्सू गाँव की महिला किसान Ms Begum कहती हैं, “पिछले पाँच वर्षों में हमारे खेतों में स्वस्थ फसल नहीं हुई है। बारिश अनियमित हो गई है, जिससे फसलें बर्बाद हो रही हैं।” उनके जैसे लाखों किसान जल संकट और फसल के खराब होने से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि 1980 से 2020 के बीच कश्मीर में तापमान 2°C तक बढ़ा है, जो जलवायु परिवर्तन का संकेत है। भारत में जलवायु परिवर्तन का यह रुख चिंता बढ़ाने वाला है।

मौसम परिवर्तन और सरकारी प्रतिक्रिया

पिछले कुछ दिनों में जानबूझकर भरे गए बारिश के बाद भी राहत का समय بہت कम रहा है। सरकार और मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में तापमान और भी बढ़ सकता है। महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसी अन्य पहाड़ी राज्यों में भी तापमान में तेजी से वृद्धि दर्ज की जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध कदम उठाना अब आवश्यक हो चुका है। सरकार ने जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण पर जोर देना शुरू कर दिया है, ताकि स्थिति में सुधार हो सके।

आगे क्या कदम और आम जनता का क्या रवैया?

विशेषज्ञों का सुझाव है कि स्थानीय स्तर पर जल संग्रहण, वृक्षारोपण और ऊर्जा संरक्षण जैसी योजनाओं को प्राथमिकता दी जाए। साथ ही, जनता को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि वे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएँ और ऊर्जा की बचत करें। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं, “जलवायु परिवर्तन का मुकाबला संयुक्त प्रयासों से ही संभव है।”

आप भी इस विषय पर अपनी राय नीचे कमेंट करें या इस खबर को अपने मित्रों के साथ शेयर करें। हर व्यक्ति की भागीदारी ही इस संकट का समाधान हो सकती है।

चित्र: कश्मीर की गर्मी में तपती घाटी का दृश्य

निष्कर्ष

कश्मीर में यह अभूतपूर्व गर्मी पड़ने का सिलसिला जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करता है। यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि जन जीवन और अर्थव्यवस्था के लिए भी चिंता का विषय है। अभी हमें चाहिए कि हम जागरूक होकर जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाएँ। तभी हम इस संकट का सामना कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए आप पीआईबी या मौसम विभाग के ट्विटर अकाउंट से भी अपडेट प्राप्त कर सकते हैं।

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