सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (15 जुलाई, 2025) को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों से एक याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें कान्वर यात्रा मार्ग पर खाद्य विक्रेताओं को उनके नाम के साथ QR कोड स्टिकर लगाने और उनके नाम banners पर प्रमुख रूप से प्रदर्शित करने की अनिवार्यता को चुनौती दी गई है। इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एम.एम. सुंदरेश की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटिस जारी कर 22 जुलाई को सुनवाई का आदेश दिया है।
हालांकि दोनों राज्यों ने जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने, जिनमें शिक्षाविद् अपूर्वानंद, सिविल अधिकार संरक्षण संगठन, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा सहित अन्य शामिल हैं, कहा कि मामला अगले हफ्ते ही सुना जाना चाहिए क्योंकि यह मामला समय-संवेदनशील है।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि सरकार का यह आदेश खाद्य दुकानों के मालिकों के नाम दिखाने का निर्देश समानता का उल्लंघन है और इससे यात्रियों में यह संकेत भी जाता है कि किन दुकानों से दूर रहना चाहिए। उनका कहना है कि इस नए नियम के अनुसार, सभी खाने की दुकानों पर QR कोड लगाए जाएंगे, जो मालिक का नाम और पहचान उजागर करेंगे। यह वही भेदभावपूर्ण profiling है, जिसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया था। जबकि इन दुकानों को लाइसेंस प्राप्त करना और दिखाना कानूनी रूप से आवश्यक है, फिर भी इन्हें केवल अंदर ही प्रदर्शित करना चाहिए था।
याचिकाकर्ताओं का मानना है कि इस कदम से समुदायिक तनाव बढ़ सकता है और विशेषकर अल्पसंख्यक समुदाय के दुकानदारों के खिलाफ हिंसा भड़ सकती है। उनका यह भी तर्क है कि धार्मिक या जातीय पहचान को लाइसेंस के नाम पर दिखाना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। लाइसेंस एक स्वायत्त प्रमाण पत्र है, जिसमें मालिक का नाम तो होता है, लेकिन इसे दुकान के अंदर ही दिखाना चाहिए, बाहर नहीं।
गौरतलब है कि पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के आदेश को स्थगित कर दिया था। 2024 में शीर्ष अदालत ने कहा था कि कानून सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए, और उत्तर प्रदेश की यह दलील खारिज कर दी थी कि उनके निर्देश केंद्र सरकार के कानून के अनुरूप हैं।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि इन आदेशों से दुकानों में काम करने वाले कर्मचारियों को जबरदस्ती निकाला गया है, जो जीवन यापन का अधिकार और व्यवसाय करने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है।
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और देखने वाली बात होगी कि न्यायपालिका इस गंभीर मुद्दे का समाधान कैसे निकालती है।