इज़राइल का Horizon Program पर निर्भरता क्यों घट रही है? नई दिशा में कदम

इज़राइल और यूरोपीय Horizon 2020 प्रोग्राम: एक नजर

2014 में, इज़राइल आधिकारिक तौर पर EU के Horizon 2020 रिसर्च और इनोवेशन प्रोग्राम में शामिल हो गया था। यह कदम नई तकनीकों, विज्ञान और इनोवेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। Horizon 2020, जो 2014 से 2020 तक चला, दुनिया का सबसे बड़ा शोध और नवाचार कार्यक्रम था, जिसका बजट लगभग 93 अरब डॉलर था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नए खोज, तकनीकी प्रगति और विश्व-प्रथम प्रयोगों को प्रोत्साहित करना था।

वैज्ञानिक अनुसंधान का दृश्य

इज़राइल की भागीदारी और सीमाएँ

इज़राइल को इस कार्यक्रम से जुड़ने के साथ ही कुछ राजनीतिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। इसमें कहा गया कि केवल उन्हीं वैज्ञानिकों और संस्थानों को भाग लेने का मौका मिलेगा जो 1967 की सीमाओं (ग्रीन लाइन) के अंदर हैं। इस प्रतिबंध के चलते, कई नवाचारक विशेषज्ञ जैसे कि अरीआल यूनिवर्सिटी, जो अत्याधुनिक अनुसंधान कर रही थी, इस कार्यक्रम में भाग नहीं ले सकी।

इज़राइल का भागीदारी आंकड़ा इन देशों में तीसरे क्रम पर रहा, विशेष रूप से स्वास्थ्य, खाद्य, बायोटेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, ऊर्जा और आईसीटी (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) के क्षेत्र में। लेकिन, कई अनुसंधान जिनमें मिलिट्री काDual-use technology शामिल हो सकती थी, उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

यूरोप का रवैया और बदलते हालात

यूरोप में जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ, तब से वहाँ की रक्षा और सैन्य उद्योगों का बढ़ना अनिवार्य हो गया है। वहीं, कुछ यूरोपीय देशों ने, जिनके अधिकारियों ने पहले इज़राइल की उन्नत तकनीकों को प्रतिबंधित किया था, अब उन्हीं तकनीकों का प्रयोग करके अपने सैन्य उपकरण तैयार किए हैं। यह बदलाव कई विशेषज्ञों द्वारा समय की जरूरत बताया जा रहा है, क्योंकि सुरक्षा मुद्दे अब वैश्विक प्राथमिकता बन चुके हैं।

राजनीतिक तनाव और इसके असर

वास्तव में, लंबे समय से यह कहा जाता रहा है कि राजनीतिक व मानवाधिकार मुद्दों के कारण इज़राइल की इस प्रोग्राम में भागीदारी को लेकर कठिनाइयां आती रही हैं। विशेष रूप से, गाजा में चल रहे संघर्ष के दौरान, विश्व स्तर पर, इज़राइल के खिलाफ आरोपों का दौर तेज हो गया है। इन्हीं आरोपों के चलते, इज़राइल की Horizon Europe में भागीदारी में कमी देखने को मिल रही है।

कुछ भारतीय और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों ने भी इस स्थिति को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि यह तकनीकी सहयोग और शोध को नुकसान पहुंचा रहा है।

आगे का रास्ता: एक आशियाई Horizon

विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय आ गया है कि इज़राइल अपनी निर्भरता को यूरोप से कम करे और नई दिशा में कदम बढ़ाए। इस दिशा में, आशियाई देशों का एक नई रिसर्च और इनोवेशन प्रोग्राम बनाने का प्रस्ताव उभर रहा है। इसे ‘आशियाई Horizon’ कहा जा सकता है, जो यूरोपीय Horizon जैसी ही संरचना और उद्देश्य रखेगा, लेकिन उसमें सीमा संबंधी प्रतिबंध नहीं होंगे।

यह कदम न केवल तकनीकी और आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद साबित होगा, बल्कि यह इज़राइल को नई सुरक्षा और विकास के मार्ग पर ले जाएगा। चीन, भारत, जापान जैसी प्रमुख आर्थिक शक्तियों के साथ मिलकर, यह प्रोग्राम वैश्विक स्तर पर शोध और नवाचार में योगदान दे सकता है।

आर्थिक और रणनीतिक लाभ

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा: नई साझेदारियों से अधिक निवेश और तकनीकी प्रगति संभव हो सकेगी।
  • सैन्य और सुरक्षा में आत्मनिर्भरता: मिलिट्री तकनीकों का स्वावलंबी विकास संभव होगा।
  • राजनीतिक स्वतंत्रता: राजनीतिक प्रतिबंधों से मुक्त होकर, अधिक खुलेपन के साथ नवाचार किया जा सकेगा।

निष्कर्ष: एक समकालीन और आत्मनिर्भर इज़राइल की दिशा में कदम

वास्तव में, यूरोप के साथ न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक संबंध भी जटिल हो रहे हैं। समय की मांग है कि इज़राइल अपनी अंतरराष्ट्रीय भागीदारी को फिर से परिभाषित करे। नई आशियाई Horizon की कल्पना न सिर्फ़ इसकी तकनीकी प्रगति के लिए जरूरी है, बल्कि यह राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त होकर, आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम भी साबित हो सकता है।

यह कदम, विश्व के बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में, इज़राइल को नई पहचान बनाने में मदद करेगा। आइए, देखें कि आने वाले वर्षों में यह प्रोजेक्ट किस तरह से आकार लेता है और कैसे यह वैश्विक अनुसंधान एवं विकास में नई क्रांति लाता है।

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अधिक जानकारी के लिए सरकारी स्रोत देखें: European Space Agency और भारत सरकार का विदेश मंत्रालय.

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