भारत में लाखों रुपये की नकली मुद्रा का जाल: साइबरटेक्नोलॉजी की नई खोजें और पुलिस की कार्रवाई

सरकार और साइबर विशेषज्ञों के लिए बड़ी चेतावनी: भारत में नकली मुद्रा का व्यापक जाल

भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली नकली मुद्रा का धंधा अब नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया है। साइबरसिक्योरिटी कंपनी CloudSEK के विशेषज्ञों ने इस जाल का पर्दाफाश किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले छह महीनों में, भारत में नकली नोटों की कुल कीमत ₹17.5 करोड़ (लगभग 2.1 मिलियन डॉलर) से भी अधिक हो चुकी है। यह नकली नोट मुख्य रूप से महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में फैले संगठित गिरोह के द्वारा बनाए और फैलाए जा रहे हैं।

कैसे खुलासा हुआ यह बड़ा नकली मुद्रा नेटवर्क?

CloudSEK के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अत्याधुनिक डिजिटल टूल्स का इस्तेमाल कर इस फर्जीवाड़े का खुलासा किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे Facebook और Instagram पर सक्रिय संदिग्ध खातों का विश्लेषण किया। खास बात यह है कि इन खातों के पीछे का मुख्य नेटवर्क GPS डेटा, फेस रिकग्निशन और यूज़र प्रोफाइल की मदद से खोज निकाला गया।

साइबर विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहली बार है जब किसी साइबर इन्वेस्टिगेशन ने इतनी सटीकता के साथ अपराधियों का पता लगाया है। शोधकर्ताओं ने 4,500 से अधिक पोस्ट, 750 से अधिक खाता और पेन नामों के तहत सक्रिय संदिग्धों की पहचान की है। इनमें से कई खातों ने सोशल मीडिया विज्ञापनों के जरिए नकली नोटों की बिक्री का प्रचार किया।

सहायक तकनीकों से हुई गिरफ्तारी

CloudSEK के विशेषज्ञों ने Open Source Intelligence (OSINT) और Human Intelligence (HUMINT) का इस्तेमाल कर मुख्य अपराधियों को चिन्हित किया। इन अपराधियों के चेहरे, मोबाइल नंबर, जीपीएस लोकेशन और सोशल मीडिया प्रोफाइल का विश्लेषण किया गया। इससे पता चला कि ये गैंग मुख्य रूप से महाराष्ट्र के धुले जिले और पुणे शहर में सक्रिय है।

विशेष रूप से, गिरफ्तारी में ये पता चला कि अपराधी नकली नोटों का उत्पादन उच्च गुणवत्ता वाले प्रिंटर, एडोब फोटोशॉप और विशेष कागज का इस्तेमाल कर कर रहे हैं। नकली नोटों में महात्मा गांधी की तस्वीर, वाटरमार्क और हरे सिक्योरिटी थ्रेड जैसी असली मुद्रण की विशेषताएं भी दिखाई देती हैं।

सामाजिक मीडिया पर नकली मुद्रा का प्रचार

अपराधी सोशल मीडिया का उपयोग अपनी फर्जी मुद्रा को फैलाने के लिए कर रहे हैं। #fakecurrency जैसे हैशटैग का प्रयोग कर, ये गिरोह व्हाट्सऐप पर लिंक भेजते हैं, जहां ग्राहक वीडियो कॉल या लिखित प्रमाण देखकर नकली नोट की गुणवत्ता का आकलन कर सकते हैं। ये गिरोह अपने उत्पाद को विश्वसनीय बनाने के लिए वीडियो, हस्तलिखित नोट और live तरीकों का भी इस्तेमाल करते हैं।

यह गिरोह रुपये के नकली नोट बनाने के लिए औद्योगिक-स्तरीय प्रिंटर, उच्च गुणवत्ता वाली पेपर और वाटरमार्क फीचर्स का प्रयोग कर रहा है। इससे पता चलता है कि यह कोई आम जाल नहीं बल्कि एक संगठित, पेशेवर अपराध नेटवर्क है।

सरकारी और कानूनी कदम

CloudSEK ने अपनी रिपोर्ट को संबंधित कानून प्रवर्तन एजेंसियों, जैसे महाराष्ट्र पुलिस और भारतीय सरकार के वित्त मंत्रालय को सौंप दिया है। इन एजेंसियों के साथ मिलकर, अब इस जाल को तोड़ने और नकली नोटों के उत्पादन को रोकने के प्रयास तेज हो रहे हैं।

संबंधित अधिकारियों का कहना है कि इस तरह के अपराधों का पर्दाफाश और रोकथाम सरकार की नीति का अभिन्न हिस्सा है। इससे न केवल आर्थिक स्थिरता बनी रहती है, बल्कि आम जनता का विश्वास भी मजबूत होता है।

क्या हो सकता है भविष्य में?

विशेषज्ञों का मानना है कि डिजिटल टेक्नोलॉजी और साइबर साक्षरता बढ़ने के साथ ही इन अपराधों का मुकाबला अधिक प्रभावी तरीके से किया जा सकता है। सरकार और निजी क्षेत्र दोनों ही ऐसे अपराधों से निपटने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। डिजिटल फोरेंसिक्स, फेस रिकग्निशन और सोशल मीडिया मॉनिटरिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल अब और भी व्यापक रूप से हो सकता है।

यह घटना यह भी दर्शाती है कि खतरनाक अपराध अब पारंपरिक तरीके नहीं, बल्कि डिजिटल और साइबर स्पेस से संचालित हो रहे हैं। इसलिए, अब यह जरूरी हो गया है कि सभी नागरिक साइबर जागरूकता बढ़ाएं और सतर्क रहें।

निष्कर्ष

यह खुलासा न केवल भारत में नकली मुद्रा के व्यापक नेटवर्क का पर्दाफाश करता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि डिजिटल दुनिया में आपराधिक गतिविधियों की सीमा कितनी बढ़ गई है। सरकार और साइबर विशेषज्ञों की मेहनत से इन अपराधों पर लगाम कसने की दिशा में नई उम्मीद जगी है। हमें भी चाहिए कि हम सतर्क रहें और अपने डिजिटल जीवन को सुरक्षित बनाएं।

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अधिक जानकारी के लिए आप CloudSEK के ट्विटर पर अधिकारी अपडेट देख सकते हैं।

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