क्या भारत के पर्यावरणीय संकट का समाधान स्थानीय समुदायों के हाथ में है?
भारत इस समय जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है। रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, अनियमित मानसून, सूखे टेलीकॉम हब और बाढ़ की घटनाएं अब केवल दूर की बातें नहीं हैं। ये परेशानियां हमारे अपने देश के दिलों में घर कर चुकी हैं। हर शहर और गांव में लोग देख रहे हैं कि पहले जहां प्रकृति का संरक्षण होता था, अब उसकी जगह खाली पड़ी है। जंगलों की कटाई, नदियों का सूखना और जल स्रोतों का खत्म हो जाना, सब हमारी प्राकृतिक विरासत को खतरे में डाल रहा है।
इस गंभीर स्थिति में, एक बात स्पष्ट हो जाती है—अगर हमें अपने देश को पुनः हरित और स्थायी बनाने का सपना पूरा करना है, तो हमें सामुदायिक भागीदारी को मजबूत बनाना होगा। स्थानीय लोग, जो अपने आसपास की जमीन से जुड़े हैं, यदि उन्हें संरक्षण का अधिकार और जिम्मेदारी दी जाए, तो बदलाव जल्द आ सकता है। यह सिर्फ सरकार का काम नहीं है, बल्कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपनी प्रकृति को संजोए।
महाराष्ट्र के देवरेस: पारंपरिक संरक्षण का नया अध्याय
महाराष्ट्र के पश्चिमी घाट में स्थित देवरेस यानी ‘सुअर जंगल’ अपने आप में सांस्कृतिक और जैविक धरोहर हैं। यह स्थान सदियों से वन्य जीव और पौधे़ के संरक्षण का केंद्र रहे हैं। लेकिन समय के साथ इन संरक्षण स्थलों को नजरअंदाज किया गया। इन जंगलों का अवैध अतिक्रमण और invasive species ने इनके अस्तित्व पर खतरा खड़ा कर दिया।
हालांकि, जब AERF जैसी संस्थाएं और स्थानीय समुदाय सामने आएं, तो तस्वीर बदलने लगी। करीब 4000 कीमती देशी वृक्षों का रोपण किया गया, और गांव वालों को इन जंगलों की देखभाल करने का प्रशिक्षण दिया गया। अब ये जंगल स्थानीय लोगों की देखरेख में सुरक्षित हैं।
इस प्रयास का एक प्रभावशाली पहलू यह रहा कि इन जंगलों में ईंधन, औषधि और अन्य उपयोगी पौधों की आपूर्ति स्थानीय समुदाय की आजीविका भी बन गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि सामुदायिक भागीदारी ही स्थायी संरक्षण का मूल मंत्र है। इस तरह के प्रयास से न सिर्फ जैव विविधता का संरक्षण होता है, बल्कि स्थानीय लोग भी अपने संसाधनों से जुड़े रहते हैं।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी से सफल प्रयास
- जैव विविधता का संरक्षण: आर्कषक जंगलों का पुनर्जीवन।
- आजीविका का सशक्तिकरण: ईंधन और औषधि जैसे संसाधनों की आपूर्ति स्थानीय समुदाय की आय का स्रोत।
- संस्कृति और परंपरा का संरक्षण: देवरेस की सांस्कृतिक महत्ता का जतन।
यह मॉडल दिखाता है कि जब लोग अपने संसाधनों के संरक्षण में सीधे भाग लेते हैं, तो परिणाम लंबे समय तक टिकाऊ होते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण वेरावल में देखने को मिला, जहां समुदाय ने अपने ही तालाब की मरम्मत कर जल संरक्षण का नया अध्याय शुरू किया।
राजस्थान के जलजीवन का संजीवनी: वOCUMENTपुका का पुनरुद्धार
राजस्थान की सूखी धरती पर एक और सफलता की कहानी है व DOCUMENTपुका का पुनरुद्धार। वDOCUMENTपुका, जो कभी सूख कर बंजर हो चुकी थी, अब जल और जीवन का स्रोत बन चुकी है। सहर से जुड़े गांव विमलपुरा में, पंचायत प्रमुख शांति देवी शर्मा की अगुवाई में, स्थानीय residents ने अपने संसाधनों से इस तालाब की खुद ही मरम्मत की। उन्होंने अपने दिल से साढ़े तीन लाख रुपये खर्च किए, सिलीट को साफ किया और पानी का भंडारण किया।
इस प्रयास का नतीजा है कि मानसून आते ही इस तालाब में 10 से 15 फीट तक पानी जमा हो गया। अब यह क्षेत्र न सिर्फ खेती के लिए उपयुक्त है, बल्कि स्थानीय लोग अपने पेड़-पौधे भी लगा रहे हैं। यह उदाहरण दिखाता है कि यदि समुदाय की ownership हो, तो जल संरक्षण कोई कठिन काम नहीं।
2021 से ही राजस्थान में 1100 से अधिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार किया गया है, जिनमें से बहुत से जलाशयों ने सूखे को खत्म कर दिया है। यह अभियान भी सरकार और निजी संस्थाओं के सहयोग से चलाया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्थानीय समुदाय की भागीदारी से जल संसाधनों का संरक्षण अधिक प्रभावी होता है और जीवनदायिनी जलाशयों को टिकाऊ बनाया जा सकता है।
संघर्ष और सफलता का मेल
इन दोनों उदाहरणों में स्पष्ट है कि केवल नीति और धन से ही नहीं, बल्कि वास्तविक बदलाव स्थानीय लोगों की भागीदारी औरOwnership से ही आता है। जब गांव के लोग अपने संसाधनों को अपना समझते हैं और संरक्षण को अपनी संस्कृति का हिस्सा बनाते हैं, तभी वे टिकाऊ सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सरकार और NGOs को चाहिए कि वे इस मॉडल को बढ़ावा दें, ताकि हर गांव में ऐसा संरक्षण आंदोलन शुरू हो सके।
यह समय है कि हम अपने पर्यावरणीय संकट को हल करने के लिए इन सफलताओं से सीखें और सामुदायिक सहभागिता को व्यापक बनाएँ। भारत के हर गाँव, हर जंगल और हर जल स्रोत के संरक्षण में स्थानीय लोगों की भागीदारी जरूरी हो गई है। तभी हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को स्थायी रूप से सुरक्षित कर सकेंगे।
क्या आप भी इस बदलाव का हिस्सा बनना चाहते हैं?
अधिक जानकारी के लिए आप पर्यावरण मंत्रालय की वेबसाइट देख सकते हैं। साथ ही, अपनी राय या अनुभव नीचे कमेंट में जरूर साझा करें। आपका योगदान ही हमें एक हरित भारत की दिशा में ले जाएगा।
आइए, इस विश्व संरक्षण दिवस पर, हम सब मिलकर अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करने का संकल्प लें। क्योंकि यदि हम नहीं, तो भविष्य में और कोई नहीं आएगा, जो हमारी पृथ्वी को फिर से वापस संजो सके।