ई-फार्मेसी पर सरकार की निष्क्रियता! क्या है स्वास्थ्य मंत्रालय की चुप्पी का कारण?

फार्मासिस्टों और औषधि उद्योग के लिए चिंताजनक स्थिति

मायसूर से यह खबर आई है कि भारत में ई-फार्मेसी और ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री पर सरकार की निष्क्रियता चिंता का विषय बन गई है। आल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (AIOCD) का कहना है कि देशभर में लाखों रिटेल रसायनज्ञ इस समस्या को लेकर चिंतित हैं। यह संगठन इस बात का भी दावा कर रहा है कि बिना उचित लाइसेंस के ऑनलाइन फार्मेसियाँ अवैध रूप से दवाइयां बेच रही हैं, जो कानून का उल्लंघन है।

अधिकारी और उद्योग जगत दोनों ही इस मसले पर अपनी चिंता जता रहे हैं, क्योंकि इन अवैध प्लेटफार्मों के कारण देश में दवाओं की सुरक्षा और ग्राहक की सेहत पर खतरा मंडरा रहा है। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब सरकार की तरफ से अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

सरकार का रवैया: मौन या अनजान?

राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री अनु प्रिय पटेल ने जुलाई 2022 में संसद में लिखित जवाब में कहा था कि ऑनलाइन प्लेटफार्मों के जरिए नियंत्रित पदार्थ, मानक से कम गुणवत्ता वाली दवाइयां और आदत बनाने वाली दवाइयों की अवैध बिक्री के कुछ मामले सामने आए हैं। सरकार उन मामलों को लेकर संबंधित राज्य लाइसेंसिंग अधिकारियों को कार्रवाई करने का निर्देश दे रही है।

उनके इस जवाब के बाद भी, संबंधित प्राधिकरणों की निष्क्रियता और कार्यवाही की कमी पर सवाल उठ रहे हैं। J. S. Shinde, अध्यक्ष, AIOCD ने कहा कि इन शिकायतों को बार-बार भेजने के बावजूद राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकारी कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि अब तक इन प्लेटफार्मों पर लगाम लगाने में सरकार का प्रयास असफल रहा है।

क्या है कानून और नियम?

भारत में दवाइयों के वितरण और बिक्री के लिए कई कानून और नियम मौजूद हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दवाओं की ऑनलाइन बिक्री पर कठोर नियम लागू हैं। भारत में भी ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 इस संदर्भ में समय-समय पर संशोधन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। खासतौर पर, 2018 में जारी किया गया GSR 817(E) ड्राफ्ट रेगुलेशन, जो ई-फार्मेसियों को नियंत्रित करने के लिए प्रस्तावित था, अब आठ साल से लंबित है।

इस ड्राफ्ट को लेकर कई उद्योग जगत और विशेषज्ञों ने अपनी आपत्तियों और सुझाव दिए हैं, लेकिन इसमें कोई निर्णायक कदम नहीं लिया गया। परिणामस्वरूप, ऑनलाइन प्लेटफार्म बिना मंजूरी के ही दवाइयां बेच रहे हैं, जिनमें नशे की आदत पैदा करने वाली दवाइयां भी शामिल हैं।

बच्चों और मरीजों के लिए खतरा

इस समस्या का असर सीधे आम जनता और खासकर रोगियों पर पड़ रहा है। कई रिपोर्टों में कहा गया है कि अवैध ई-फार्मेसियों से प्राप्त दवाइयां अक्सर मानक से कम गुणवत्ता की होती हैं। इनके कारण दवाओं के दुष्प्रभाव बढ़ सकते हैं और मरीजों की जान भी खतरे में पड़ सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि समय रहते इन पर कड़ा कदम नहीं उठाया गया, तो दवाओं के बाजार में नकली और घटिया उत्पादों की संख्या बढ़ेगी, जो स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ा खतरा है।

सरकार और उद्योग के बीच बातचीत जारी

हाल ही में, AIOCD के प्रतिनिधियों ने भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल, Dr Rajeev Raghuvanshi से मुलाकात की और अवैध ई-फार्मेसियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की भीख मांगी। इसके साथ ही, उन्होंने महामारी के दौरान लागू हुई GSR 220(E) के उपयोग को भी रोकने की मांग की है।

आगे, इन प्रतिनिधियों ने सरकार से आग्रह किया है कि वे पिछले वर्षों से लंबित पड़े GSR 817(E) को पूरी तरह से लागू करें, ताकि डिजिटल दवाइयों की बिक्री में पारदर्शिता और कानूनी स्पष्टता आए।

प्रभाव और भविष्य की दिशा

यह स्थिति स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि सरकार और संबंधित प्राधिकरण को तुरंत कार्रवाई करनी होगी। बिना उचित नियम और कानून के, ऑनलाइन फार्मेसी प्लेटफार्म न सिर्फ कानून का उल्लंघन कर रहे हैं, बल्कि आम जनता और मरीजों की सुरक्षा के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।

डिजिटल युग में स्वास्थ्य सेवाओं का सुधार and regulation आवश्यक है। सरकार के साथ-साथ उद्योग जगत को भी मिलकर इस चुनौती का सामना करना चाहिए।

आपकी इस मुद्दे पर क्या राय है? नीचे कमेंट करें और इस खबर को अपने मित्रों के साथ साझा करें।

अधिक जानकारी के लिए आप भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय या विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट देख सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *