डोगरी भाषा का संकट और उसकी महत्ता
जम्मू-कश्मीर का प्राचीन और समृद्ध भाषा डोगरी आज एक गहरे संकट का सामना कर रही है। यह भाषा, जो कि डोगरा समुदाय की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है, धीरे-धीरे अपनी जीवंतता खोती जा रही है। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि आखिर क्यों और कैसे अपनी मातृभाषा को बचाया जाए।
डोगरी का परिचय और ऐतिहासिक महत्त्व
डोगरी एक इंडो-आर्यन भाषा है, जो मुख्य रूप से जम्मू क्षेत्र में बोली जाती है। यह भाषा अपने आप में एक समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर है, जिसमें लोकगीत, कहानियाँ, भजन, पहेलियाँ और परंपरागत कथाएँ शामिल हैं। इतिहास में यह भाषा डोगरा राजवंश, वीर सैनिकों, संतों और कलाकारों की भाषा रही है। 2003 में इसे भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया, जिससे इसकी आधिकारिक मान्यता मिली।
आधिकारिक मान्यता के बाद भी क्यों खतरे में है डोगरी?
सर्वेक्षण और विशेषज्ञ रिपोर्ट बताते हैं कि डोगरी का प्रयोग अब घरों, स्कूलों और सार्वजनिक जीवन में घटता जा रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 26 लाख लोग इसे अपनी मातृभाषा मानते हैं, पर वास्तविकता इससे कम ही है। जम्मू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में केवल 30% ही परिवार डोगरी का प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी जैसी भाषाएँ तेजी से अपनी जगह बना रही हैं।
क्यों हो रहा है डोगरी का क्षरण?
- शहरीकरण और भाषा का कलंक: युवा पीढ़ी अब अंग्रेजी और हिंदी को अपने संचार का माध्यम बना रही है। यह सोच कि डोगरी पिछड़ी या ग्रामीण भाषाएँ हैं, उनके आत्मविश्वास को प्रभावित कर रही है।
- शिक्षा प्रणाली की खामियां: डोगरी को स्कूलों में अनिवार्य नहीं बनाया गया है। पाठ्यपुस्तकें पुरानी हैं, और प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं। इसके कारण छात्र इस भाषा में खास दिलचस्पी नहीं लेते।
- डिजिटल युग और सांस्कृतिक विस्थापन: सोशल मीडिया, रील्स, हेशटैग और डिजिटल कंटेंट में डोगरी का कम प्रयोग हो रहा है। अधिकांश सामग्री हिंदी और अंग्रेजी में ही मिलती है, जिससे भाषा की मौजूदगी कम हो जाती है।
सांस्कृतिक और मीडिया की उपेक्षा
पश्चिमी भाषाओं जैसे पंजाबी और बंगाली की तुलना में, डोगरी का सिनेमाई और मीडिया में बहुत कम स्थान है। कई लोकगीत, नृत्य और वेबसीरीज से इसकी पहचान कमजोर हो रही है। ऑल इंडिया रेडियो जम्मू की डोगरी प्रोग्रामिंग सीमित है और टीवी न्यूज बुलेटिन भी रोजमर्रा के दर्शकों तक नहीं पहुँच पाते। इस अंतराल ने भाषा के प्रति गर्व और पहचान को कम किया है।
डोगरी का संरक्षण कर रहे लोग और प्रयास
भले ही स्थिति चिंताजनक है, पर कुछ लोग इस भाषा को बचाने के लिए चुपचाप अपनी मेहनत कर रहे हैं। शिक्षक, साहित्यकार, युवा क्रिएटर और NGOs अब डोगरी को फिर से जीवंत करने में लगे हैं।
संस्कृतिक हीरो और उनकी आवाज़ें
जम्मू के लोकप्रिय मीडिया व्यक्तित्व और कवि Sunny Dua का कहना है कि सीमा क्षेत्रों में पंजाबी की संस्कृति का प्रभाव डोगरी पर है, लेकिन इस जमे-जमाए विरासत को जिंदा रखने के लिए हमें गुणवत्ता वाले गीत, कविता और कहानियों में निवेश करनी चाहिए।
वे कहते हैं, “डोगरी को सिर्फ पुरानी कहानियों का संग्रह नहीं, बल्कि एक जीवंत भाषा बनाना है, जो वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सके।”
शैक्षणिक प्रयास और संस्थान
जम्मू विश्वविद्यालय का डोगरी विभाग अब MA, MPhil और PhD जैसे कोर्स चला रहा है। साहित्य अकादमी डोगरी की पुस्तकों का प्रकाशन और पुरस्कार भी देता है। डोगरी संथा जम्मू इस भाषा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए साहित्यिक समारोह और पुस्तक मेले आयोजित करती है।
डोगरी साहित्य के नामी लेखक जैसे Ved Rahi और Padma Sachdev नई कविताएँ और गीत लिख रहे हैं, जो भाषा को फिर से जीवित कर रहे हैं।
डिजिटल माध्यमों में डोगरी का बाज़ार
युवा डिजिटल क्रिएटर सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे इंस्टाग्राम, यूट्यूब और स्पॉटिफाई पर डोगरी को नए अंदाज में पेश कर रहे हैं। @DogriDuniya जैसे पेज memes और reels के जरिए भाषा का प्रचार कर रहे हैं।
एक लोकप्रिय डोगरी रैपर Yuvraj ने 2023 में YouTube पर डोगरी- पंजाबी रैप रिलीज किया, जिसे लाखों बार देखा गया। यह दर्शाता है कि नई पीढ़ी अपनी भाषा को डिजिटल प्लेटफार्म पर भी जीवित रख रही है।
सरकार की भूमिका और आवश्यक कदम
2020 में जम्मू-कश्मीर की आधिकारिक भाषाओं की अधिसूचना के तहत डोगरी को राजकीय भाषा का दर्जा मिला, पर इसके क्रियान्वयन में अभी भी कमी है। सरकारी कार्यालयों, स्कूलों और मीडिया में इसकी सप्रयास उपयोगिता नहीं दिखाई देती।
विशेषज्ञ कहते हैं, “मात्रामात्रा और भाषाई पहचान को मजबूत करने के लिए सही नीतियों की जरूरत है।”
क्या करना चाहिए?
- डोगरी को कार्यात्मक बनाओ: सरकारी कामकाज, मार्गदर्शन, और सार्वजनिक स्थानों पर इसकी उपयोगिता बढ़ाओ।
- डिजिटल में डोगरी: कीबोर्ड, ऑcr, और ट्रांसलेशन टूल्स को विकसित करो।
- सिनेमा और मीडिया में निवेश: फिल्में, वेब सीरीज और OTT प्लेटफार्मों में डोगरी कंटेंट प्रोमोट करो।
- विद्यालयी सुधार: कक्षा 1 से 5 तक डोगरी अनिवार्य बनाओ, शिक्षकों की ट्रेनिंग पर ध्यान दो।
मिलकर ही बच पाएगी डोगरी
सभी के प्रयासों से ही इस भाषा का भविष्य सुरक्षित हो सकता है। हर माता-पिता, शिक्षक, छात्र और नागरिक का कर्तव्य है कि वे अपने भाषा के प्रति प्रेम दिखाएँ।
जैसा कि डोगरी में कहा जाता है: “Jinney Boli Chhaddi, Ussne Aap Chhaddiya” – “जो अपनी भाषा छोड़ता है, वह अपने आप को छोड़ देता है।”
निष्कर्ष
डोगरी का संकट एक चेतावनी है कि अगर हम अभी नहीं जागे, तो यह विलुप्त हो जाएगी। हमें उसकी समृद्धि के लिए कदम उठाने होंगे—यह चुप्पी तोड़नी होगी, अपनी भाषा को फिर से बात करनी होगी, लिखनी होगी और जीनी होगी। तभी हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों और विरासत को सुरक्षित कर सकते हैं। हर भाषाई अंतःकरण का कनेक्शन उसकी दुनिया और उसकी आत्मा से होता है। इसलिए, आइए, अपने इस अनमोल खजाने को बचाने में योगदान दें।