कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने यहाँ एक बयान में कहा है कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के मजदूरों की उपस्थिति को वेब प्लेटफॉर्म ‘नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम’ (NMMS) के माध्यम से फोटो अपलोड पर आधारित डिजिटल प्रणाली ‘असंभव’ और ‘विपरीत परिणाम देने वाली’ है, जिसे तुरंत हटाना चाहिए।
द हिन्दू ने मंगलवार (15 जुलाई, 2025) को रिपोर्ट किया था कि यूनियन ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 8 जुलाई को राज्यों को निर्देश दिए थे, जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार NMMS, जिसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना था, का दुरुपयोग हो रहा है। तीन साल पहले सरकार ने सभी मनरेगा मजदूरों के लिए इस प्लेटफॉर्म का उपयोग अनिवार्य कर दिया था, जिसमें उन्हें कार्यस्थल पर दो बार अपनी तस्वीरें अपलोड करनी होती थीं। लेकिन पता चला है कि इस प्रक्रिया में कई अनावश्यक और फर्जी तस्वीरें भी अपलोड की जा रही हैं।
जयराम रमेश ने इस पर तंज कसते हुए कहा, ‘मोदी सरकार का नारा है कि पहले घोषणा करो, फिर सोचो।’ उन्होंने कहा कि सरकार ने इस प्रणाली की कार्यक्षमता को पहले ही हाइलाइट किया है और 8 जुलाई के नोटिफिकेशन को सरकार की समस्या की अंतिम स्वीकृति माना जा सकता है। रमेश ने कहा कि NMMS ने सच्चे मजदूरों को भी इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य कारणों से बाहर कर दिया है, और फर्जी मजदूरों की पहचान करने में भी असमर्थ रहा है, क्योंकि वे दिन में दो बार तस्वीरें खिंचवाकर बिना काम किए ही भुगतान प्राप्त कर सकते हैं।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन मोदी सरकार ने इस समस्या को मान्यता देने के बाद भी, उससे भी बदतर समाधान खोजे हैं। फोटो की पुष्टि के लिए प्रशासन के ऊपर ऊपर से नीचे तक लगे रहना समय की बर्बादी है। सरकार को चाहिए कि वह ‘कार्य आधारित भुगतान’ को लागू करे, जो कि मनरेगा की असल आत्मा है।’
मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य निखिल डेय ने भी कहा कि 8 जुलाई का आदेश इस बात का स्वीकृति है कि NMMS कार्यकुशल नहीं है, लेकिन सरकार का प्रस्तावित समाधान गलत दिशा में है। उन्होंने कहा, ‘सरकार मजदूर को सिर्फ उसकी उपस्थिति के लिए भुगतान नहीं कर रही, बल्कि काम करने के आधार पर भुगतान करना चाहिए। फोटो दिखाने से काम का प्रमाण नहीं मिल सकता।’
उन्होंने सुझाव दिया कि बजाय मजदूरों पर नई और जटिल प्रणालियों को थोपने के, सरकार को निरीक्षण अधिकारियों और इंजीनियरों को जवाबदेह बनाना चाहिए। ‘इंजीनियर पहले खुद काम का माप करें और फिर उसकी गुणवत्ता का आकलन करें। इसके बजाय, सरकार को जियो-टैगड और जियो-फेंस्ड तस्वीरें बनाने का प्रावधान लाना चाहिए, ताकि पता चल सके कि अधिकारी खेत में कब गए थे।’
यह समाचार 17 जुलाई, 2025 को सुबह 10:26 बजे प्रकाशित किया गया।