कोविड और पर्यावरण: क्या बढ़ती हुई CO2 मात्रा फलों की पैदावार को नई दिशा दे रही है?
आधुनिक पर्यावरण विज्ञान में एक तीखा विवाद रहा है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का बढ़ना केवल पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि कृषि के क्षेत्र में भी एक आशाजनक बदलाव ला सकता है। जबकि ग्लोबली CO2 को एक ग्रीनहाउस गैस माना जाता है, इसकी बढ़ती मात्रा का कुछ अध्ययन इसकी उर्वरक प्रकृति को भी उजागर करता है।
CO2 का पौधों पर प्रभाव: क्यों है जरूरी?
वास्तविकता यह है कि CO2 पौधों के लिए जीवन रेखा है। यह पौधों के फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया का मूल आधार है, जिससे वे अपने लिए भोजन बनाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से वायु में CO2 की मात्रा में हुई वृद्धि ने पृथ्वी के अधिकांश भागों में वनस्पति को लाभ पहुंचाया है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि, “औद्योगिक गतिविधियों के चलते वातावरण में CO2 की मात्रा बढ़ने से पौधों को अधिक कार्बन प्राप्त होता है, जिससे उनकी विकास दर बढ़ती है।”
प्राकृतिक वनों और कृषि पर सकारात्मक प्रभाव
ऐतिहासिक दृष्टि से देखें, तो करीब 1300 से 1850 के बीच चली छोटी हिमयुग के दौरान, तापमान बहुत कम था, जिससे फलों की खेती पर नकारात्मक असर पड़ा। उस समय के तापमान में असमान्य उतार-चढ़ाव, ठंडे मौसम, सूखे और भारी बारिश जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पूरा प्रभाव देखा गया।
अब यही स्थिति नहीं है। आधुनिक तकनीकों और बढ़ते CO2 स्तर के कारण, फल-पौधों की वृद्धि में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में 2007 में हुई एक अध्ययन में पाया गया कि अनियमित ठंडक के कारण सूखे और फलों की फसलें प्रभावित हुई थीं। वहीं, आज की बात करें, तो गर्म तापमान और लंबे मौसम ने फलोत्पादन में मदद पहुंचाई है।
विशेष अध्ययन और वैज्ञानिक निष्कर्ष
2022 में हुई एक अध्ययन में वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि CO2 का ‘फर्टिलाइजेशन प्रभाव’ नकारा नहीं जा सकता। यह प्रभाव खासतौर पर फलों की किस्मों में देखने को मिल रहा है।
इस अध्ययन में कहा गया है कि उच्च CO2 स्तर पर पौधों का फोटोसिंथेसिस बढ़ता है, जिससे न सिर्फ फसलों की मात्रा बढ़ती है, बल्कि उनका स्वाद और पोषण मान भी सुधरता है।
उदाहरण के तौर पर, टमाटर जैसी फसलें 80% तक ज्यादा उत्पादन कर सकती हैं, जब CO2 का स्तर नियंत्रित वातावरण में 1000 ppm तक बढ़ाया जाता है। यह मात्रा प्राकृतिक वायु में वर्तमान में लगभग 430 ppm है।
फल की किस्में और उनकी प्रतिक्रियाएँ
- ब्लूबेरी और रास्पबेरी: इन फल पौधों को अधिक CO2 से फायदा होता है, जिससे उनका आकार, स्वाद और पोषण बढ़ता है।
- स्ट्रॉबेरी: गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है। इन फलों में सूखी सामग्री, फ्रक्टोज़, ग्लूकोज़ और खारे शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।
- संत्रियों, अंगूर और पपीता: इन फलों को सूखे और जलभराव के तनाव से राहत मिलती है, जिससे बेहतर पैदावार संभव होती है।
आधुनिक कृषि और टेक्नोलॉजी का योगदान
आधुनिक टेक्नोलॉजी और जैविक संशोधन (Biotechnology) ने भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कृषि वैज्ञानिक अब ऐसे नए पौधों की खेती कर रहे हैं जो उच्च CO2 स्तर का बेहतर उपयोग कर सकते हैं।
यह तकनीक किसानों को न सिर्फ बेहतर गुणवत्ता का फल उगाने में मदद कर रही है, बल्कि सूखे और जलभराव जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी मुकाबला आसान हो रहा है।
क्या यह बदलाव स्थायी है?
हालांकि, यह जरूरी है कि हम समझें कि CO2 का बढ़ना पूरी तरह से सकारात्मक नहीं है। अधिक तापमान और मौसम में असंतुलन जैसी समस्याएँ अभी भी मौजूद हैं।
इसे देखते हुए, वैज्ञानिक कहते हैं कि हमें टिकाऊ और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। सस्ते और प्राकृतिक उपायों से कृषियों को सुरक्षित रखना और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
अंत में: एक नए युग की शुरुआत?
यह सच है कि वायु में बढ़ रही CO2 मात्रा फसलों के विकास के लिए नई संभावनाएँ खोल रही है। परंतु, इस बदलाव का सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव समझदारी से देखना चाहिए।
आधुनिक अनुसंधान और नवाचारों के साथ, हम ऐसी खेती कर सकते हैं जो पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार और लाभकारी दोनों हो।
यह बात स्पष्ट है कि पृथ्वी का भविष्य स्वच्छ और हरित तकनीकों पर ही निर्भर है।
यह विषय बहुत जटिल है, और इस पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें। अधिक जानकारी के लिए World Health Organization की वेबसाइट देखें। साथ ही, पर्यावरण मंत्रालय के ट्विटर अपडेट पर नवीनतम खबरें प्राप्त करें।