मौसम की मार: जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर में खाद्य सामग्री की कीमतें अचानक बढ़ीं

प्रवाहिका: जलवायु परिवर्तन और खाद्य कीमतों में भारी उछाल का कारण

आज के समय में विश्वभर में खाद्य सामग्री की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। potatoes, rice, fruits, vegetables, olive oil, cocoa और coffee जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतें उन परिस्थितियों के कारण अचानक आसमान छू रही हैं, जिनकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। यह सभी बदलाव जलवायु की गंभीर परेशानियों का परिणाम हैं, जिन्होंने पिछले कुछ वर्षों में ऐतिहासिक रिकॉर्ड भी तोड़ दिए हैं।

मौसम परिवर्तन और खाद्य कीमतें

मौसम की अनिश्चितता और खाद्य संकट

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आए दिन होने वाले extreme weather events जैसे कि सूखे, बाढ़ और तेज गर्मी ने फसलों को बुरी तरह प्रभावित किया है। बैरिकला सुपरकंप्यूटिंग सेंटर के शोधकर्ताओं ने 18 देशों में दो साल की अवधि में 16 ऐसे संकटमय उदाहरण दर्ज किए हैं, जहां खाद्य कीमतें अचानक बढ़ गई हैं। ये घटनाएँ इतनी भयानक थीं कि 2020 से पहले का इतिहास भी इनसे मेल खाता नहीं था।

खाद्य वस्तुओं पर असर

ब्रिटेन की potatoes, कैलिफ़ोर्निया की सब्जियां, दक्षिण अफ्रीका का maize और भारत की प्याज़ ऐसे खाद्य पदार्थ हैं, जिनपर हाल ही में हुए जलवायु संकट का सीधा असर पड़ा है। इन खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में कमी और कीमतों में वृद्धि ने आम जनता को काफी प्रभावित किया है।

खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर प्रभाव

Food Foundation की रिपोर्ट के अनुसार, स्वस्थ आहार की कीमतें कम कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों की तुलना में दोगुनी अधिक हैं। जब कीमतें बढ़ती हैं, तो गरीब परिवारों को पौष्टिक भोजन जैसे फल और सब्जियों से परहेज करना पड़ता है, क्योंकि उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।

यह स्थिति स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। पोषण की कमी से बच्चे (खासतौर पर जिनकी पोषण संबंधी जरूरतें अधिक होती हैं), रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। इसके अलावा, chronically unhealthy diets से हृदय रोग, टाइप 2 डायबिटीज और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर

आहार की असुरक्षा और खराब खानपान का मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ भी बढ़ रही हैं, जो इस संकट की गंभीरता को दर्शाती हैं।

क्या है वजह और आगे का रास्ता?

विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक हम ‘नेट-जीरो’ उत्सर्जन की ओर नहीं बढ़ते, तब तक इन आपदाओं का सिलसिला जारी रहेगा। जलवायु परिवर्तन के कारण ही इन extreme weather events की संख्या और तीव्रता दोनों बढ़ रही हैं।WHO के अनुसार, वर्तमान स्थिति में यह बदलाव न सिर्फ पर्यावरण, बल्कि सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर भी भारी असर डाल रहा है।

आर्थिक प्रभाव और सरकारी प्रयास

बढ़ती खाद्य कीमतें केंद्रीय बैंकों के लिए भी चिंता का विषय बन गई हैं। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना कठिन हो रहा है क्योंकि बिक्री में उतार-चढ़ाव और वैश्विक बाजारों में अस्थिरता बनी रहती है। कई सरकारें अब जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए नई नीतियों का सहारा ले रही हैं।

क्या किया जा सकता है?

यह जरूरी है कि हम जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक कदम उठाएँ। कृषि प्रणालियों को अनुकूल बनाना, टिकाऊ खेती पर ध्यान देना और ऊर्जा स्रोतों में बदलाव लाना, इस दिशा में आवश्यक कदम हैं। साथ ही, सामाजिक योजनाओं के माध्यम से गरीब परिवारों को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना भी अहम है।

इसके अतिरिक्त, व्यक्तिगत स्तर पर हम भी ऊर्जा संरक्षण, शून्य कचरा और स्थायी जीवनशैली अपनाकर इस संकट का मुकाबला कर सकते हैं। सरकार और समाज के मिलकर प्रयास से ही बेहतर परिणाम संभव हैं।

निष्कर्ष

यह स्पष्ट है कि मौसम की मार और जलवायु परिवर्तन हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहे हैं। खाने-पीने की चीजें महंगी होने, स्वास्थ्य एवं मानसिकता पर असर डालने और अर्थव्यवस्था को जटिल बनाने वाली ये समस्याएँ सिर्फ वर्तमान का संकट नहीं हैं, बल्कि आने वाले वर्षों के लिए भी चेतावनी हैं। हम सभी का कर्तव्य है कि हम इस दिशा में जागरूक और संकल्पित प्रयास करें।

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अधिक जानकारी के लिए आप PIB या मGov.in जैसे विश्वसनीय स्त्रोत देख सकते हैं।

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