क्या क्लाइमेट एंग्जायटी एक नई मानसिक समस्या है? शोध में खुलासा

क्या क्लाइमेट एंग्जायटी एक नया मानसिक विकार हो सकता है?

आज के दौर में चिंता और तनाव की बात करें तो जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। यह न केवल हमारे पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डाल रहा है। हाल ही में हुए शोध में इसे एक नए तरह के मानसिक तनाव के रूप में देखा जा रहा है, जिसे “क्लाइमेट एंग्जायटी” कहा जाता है।

क्लाइमेट एंग्जायटी क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

क्लाइमेट एंग्जायटी का अर्थ है उस तरह की चिंता और डर, जो जलवायु परिवर्तन की वजह से लोगों में जन्म लेती है। इसमें चिंता, निराशा, क्रोध, भय, शोक और उदासी जैसी भावनाएँ शामिल हैं। जैसे-जैसे दुनिया में पर्यावरणीय आपदाएँ बढ़ रही हैं—जैसे सूखे, जंगल की आग और भीषण तूफान—वैसे-वैसे यह चिंता भी बढ़ रही है।

शोध के अनुसार, युवाओं में चिंता का स्तर बढ़ रहा है

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ के शोधकर्ताओं ने 10,000 युवा पीढ़ियों का सर्वेक्षण किया। इसमें पाया गया कि लगभग 45% युवा लोग जलवायु परिवर्तन को लेकर अपनी चिंताओं को लेकर परेशान हैं, जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रही है। खासतौर पर विकासशील देशों में यह समस्या अधिक देखने को मिली है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाल रहा है।

क्या क्लाइमेट एंग्जायटी मानसिक विकार माना जाएगा?

वर्तमान में, अमेरिकी मानसिक स्वास्थ्य मानकों की गाइडलाइन में इसे आधिकारिक रूप से मानसिक विकार के रूप में शामिल नहीं किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक सामान्य, नैतिक चिंता भी हो सकती है, जिसका उपयोग हम पर्यावरण की गंभीरता को समझने के लिए कर सकते हैं।स्टैनफोर्ड के विशेषज्ञ ब्रिट व्रे का कहना है, “यह जरूरी नहीं कि हम इसे रोग ही मानें।”

क्या यह चिंता हमारे लिए उपयोगी भी हो सकती है?

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु को लेकर चिंता, यदि सही ढंग से प्रबन्धित की जाए, तो यह हमें कार्रवाई करने के लिए प्रेरित कर सकती है। उदाहरण के तौर पर, यह क्रोध और जागरूकता के रूप में सामने आ सकता है, जो युवा पीढ़ी को पर्यावरण संरक्षण के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है।

इसके नुकसान और चुनौतियाँ

हालांकि, यह चिंता बहुत अधिक हो जाने पर ‘Eco-paralysis’ नामक स्थिति पैदा कर सकती है। इसमें व्यक्ति असहाय महसूस करता है और कोई भी प्रभावी कदम नहीं उठा पाता। यह तनाव, नींद की परेशानी, कामकाज और पढ़ाई पर भी बुरा असर डाल सकता है।

समाज में इस विषय का महत्व और जागरूकता

हालांकि यह नई स्थिति है, लेकिन आज इसकी चर्चा जरूरी है। इससे जुड़ी चुनौतियों में से प्रमुख है कि क्या इसे मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मान्यता मिलेगी। यदि इसे मनोवैज्ञानिक विकार के रूप में मान्यता नहीं मिलती, तो क्या लोग इसे गंभीरता से लेंगे? क्या समाज इसे केवल एक भावना समझकर नजरअंदाज कर देगा?

क्या कदम उठाने चाहिए?

  • शिक्षा और जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों में इस विषय की समझ बढ़ाना।
  • मनोवैज्ञानिक सहायता और परामर्श सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  • सरकार और संस्थानों का इसमें सक्रिय भूमिका निभाना।
  • महत्वपूर्ण यह कि युवा और बच्चे इन भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करें।

सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय और शैक्षणिक संस्थान इस दिशा में कदम उठा रहे हैं। हाल ही में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसके प्रभावों को समझते हुए जागरूकता फैलाने के लिए पहल की है।

क्या समाज इसमें सुधार कर सकता है?

समाज को चाहिए कि वह इस भावनात्मक स्थिति को समझे और मदद के लिए तैयार रहे। मीडिया और सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे कि Twitter पर अधिकारी अपडेट, Facebook और Instagram पर जागरूकता फैलाना जरूरी है। इससे युवा और सामान्य लोगों को अपनी भावनाएँ व्यक्त करने और सहायता पाने का अवसर मिलेगा।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक और गंभीर समस्या है, जिसका प्रभाव सिर्फ पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि हमारे मनोबल पर भी पड़ रहा है। यदि इस दिशा में जागरूकता और उचित कदम नहीं उठाए गए, तो यह चिंता मानसिक स्वास्थ्य का बड़ा मुद्दा बन सकती है।यह जरूरी है कि हम इस बदलाव को समझें और अपने मानसिक और सामाजिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें।

इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें या सोशल मीडिया पर साझा करें, ताकि अधिक से अधिक लोग जागरूक हो सकें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *