चीन की शैक्षिक शक्ति में उछाल: अमेरिका से भारतीय और चीनी छात्रों का पलायन क्यों हो रहा है?

प्रस्तावना: वैश्विक विश्वविद्यालय रैंकिंग में चीन का बढ़ता दबदबा

हाल ही में जारी US News और World Report की विश्व की श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की रैंकिंग ने चीन की तेज़ तरक्की का संकेत दिया है। इस सूची में पीकिंग विश्वविद्यालय और झेजियांंग विश्वविद्यालय जैसे संस्थान लगातार ऊपर आ रहे हैं। यह बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में चीन की मजबूत पकड़ और अमेरिका में पढ़ाई करने वाले छात्रों की संख्या में हो रहे घटाव को उजागर करता है।

चीन की विश्वविद्यालय रैंकिंग में हुई आश्चर्यजनक बढ़ोतरी

2018 में, त्सिंगहुआ विश्वविद्यालय 50वें स्थान पर था और पीकिंग विश्वविद्यालय 68वें। अब, ये दोनों ही संस्थान 15 चीनी विश्वविद्यालयों में शामिल हैं जो विश्व के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में हैं। त्सिंगहुआ अब 11वें स्थान पर है, जो इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती प्रमुखता को दर्शाता है।

यह उछाल शिक्षा में निरंतर निवेश और उच्चस्तरीय शोध कार्यों का परिणाम है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन ने शिक्षण संस्थानों में भारी संसाधन लगाया है और विदेशी अध्ययन को आकर्षित करने के लिए छात्रवृत्तियों और रिसर्च फंडिंग को बढ़ावा दिया है।

अमेरिका में पढ़ाई करने वाले चीनी छात्रों में गिरावट क्यों?

अमेरिका में पढ़ाई करने वाले चीनी छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। 2019-20 शैक्षणिक वर्ष में, चीन से आए छात्रों की संख्या 3,72,532 थी, जो अब घटकर 2,77,398 रह गई है। यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षों में 25% से अधिक की गिरावट दर्शाता है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिकी सरकार की नई नीतियां और वीज़ा संबंधी कड़े प्रतिबंध इस गिरावट के मुख्य कारण हैं। ट्रंप प्रशासन के दौरान शुरू हुई ‘China Initiative’ ने चीनी शोधकर्ताओं और छात्रों के प्रति अमेरिकी सरकार की नज़रिए को कठोर किया है। इसका परिणाम यह है कि अमेरिका में अध्ययन करने के इच्छुक चीनी छात्रों की संख्या में कमी आई है।

वैज्ञानिकों का पलायन

  • 2010 से 2021 के बीच, लगभग 20,000 वैज्ञानिकों ने अपने शोध कार्य अमेरिका से कहीं और स्थानांतरित कर लिए।
  • यह प्रवास मुख्य रूप से उन देशों की ओर हुआ है जहाँ विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र को बेहतर संसाधन और अवसर मिल रहे हैं।
  • यह प्रवास नीति, शोध फंडिंग में कटौती और वीज़ा पर लगे प्रतिबंधों का परिणाम है।

आर्थिक और सुरक्षा कारण

अमेरिका में चीन के प्रति बढ़ती चिंता और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों ने इस प्रवास को प्रभावित किया है। सरकार का मानना है कि विदेशी शोधकर्ता और छात्र कथित रूप से आर्थिक व तकनीकी जासूसी में शामिल हो सकते हैं। इस कारण से ट्रंप प्रशासन ने चीन से आने वाले छात्रों और वैज्ञानिकों पर नजर रखना शुरू कर दिया।

यह नीति बदलाव, दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने के साथ ही, वैज्ञानिक और शैक्षिक आदान-प्रदान पर भी असर डाल रही है।

चीन के पास अवसर और भविष्य की राह

वहीं, चीन ने अपने विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने और शोध को बढ़ावा देने के लिए निरंतर निवेश किया है। इससे वहाँ के संस्थान वैश्विक रैंकिंग में ऊपर आ रहे हैं। चीन ने अपने उच्च शिक्षा विभाग को मजबूत किया है और विदेशी छात्रों को आकर्षित करने के लिए नई पहलें शुरू की हैं।

यह बदलाव दर्शाते हैं कि भविष्य में चीन का शैक्षिक क्षेत्र विश्व में और अधिक सम्मानित होगा।

आगे का रास्ता: क्या भारत भी इन बदलावों का हिस्सा बनेगा?

भारत भी अपनी उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से सुधार कर रहा है। नई विश्वविद्यालय नीति, शोध को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के प्रोजेक्ट्स इसके संकेत हैं। लेकिन, अभी भी भारत को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

शिक्षा नीति में सुधार, शोध निवेश और वैश्विक स्तर पर नेटवर्किंग ही भारत को प्रतियोगिता में आगे रख सकती है।

निष्कर्ष: ग्लोबल शिक्षा का बदलता परिदृश्य

यह समय है जब विश्व की विश्वविद्यालय रैंकिंग और छात्रों का पलायन ध्यान केंद्रित कर रहा है। चीन की सफलता शिक्षा में बदलाव और रणनीतिक निवेश का नतीजा है, तो वहीं अमेरिका की नीति बदलाव इन प्रवासियों को प्रभावित कर रही है।

आगे का समय ही बताएगा कि किस देश की शिक्षण प्रणाली बेहतर परिणाम दिखाती है और वैज्ञानिक संसाधनों का सही उपयोग कर पाती है। इस बदलाव का प्रभाव न केवल छात्रों, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी पड़ेगा।

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