बिना टैरिफ ब्रिटिश जंक फूड का भारत में प्रवेश, बच्चों की सेहत पर बढ़ता खतरा?

क्या भारत के बच्चे विदेशी जंक फूड की चपेट में आ रहे हैं?

हाल ही में भारत-UK के बीच हुए Free Trade Agreement (FTA) ने देश में विदेशी खाद्य उत्पादों की नई राह खोल दी है। खासकर ब्रिटिश जंक फूड्स, जो बिना टैक्स के भारत में आ रहे हैं, बच्चे और युवा तेजी से इन उत्पादों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इस बदलाव के साथ ही स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता भी बढ़ गई है। वे कहते हैं कि इन फास्ट फूड्स में हाई मात्रा में शुगर, सैचुरेटेड फैट और सोडियम होता है, जो बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक है।

FTA के तहत ब्रिटिश जंक फूड्स का भारत में प्रवेश आसान

भारत-UK की Free Trade Agreement (FTA) ने दोनों देशों के व्यापारिक रिश्तों को मजबूत किया है, लेकिन इस करार का असर भारतीय बाजार पर भी पड़ा है। अब ब्रिटिश जंक फूड्स जैसे चिप्स, बर्गर, पॉपकॉर्न और पेय पदार्थ बिना टैरिफ के आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। ये उत्पाद मूल रूप से अधिकतर भारत में पहले महंगे पड़ते थे, लेकिन बिना टैक्स के इनकी कीमतें घटने से उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस दिशा में तत्काल कदम उठाने चाहिए। बच्चों की स्वास्थ्य सुरक्षा सबसे जरूरी है, इसलिए हमें सख्त नियम बनाने की आवश्यकता है ताकि इन फास्ट फूड्स के विज्ञापन और बिक्री पर नियंत्रण हो सके।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय और आंकड़े

डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ मानते हैं कि इन जंक फूड्स में मौजूद उच्च मात्रा में शुगर, सोडियम और ट्रांस फैट बच्चों के हृदय रोग, मोटापे और डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में 15 साल से कम उम्र के बच्चों में मोटापे का प्रतिशत पिछले दशक में दोगुना हो गया है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत में बच्चों में मोटापे का प्रतिशत लगभग 12% है, जो कि भविष्य में और बढ़ने की आशंका है। इस स्थिति ने सरकार और स्वास्थ्य संस्थानों को चिंता में डाल दिया है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को इन उत्पादों पर प्रचार-प्रसार पर प्रतिबंध लगाना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी को इनसे बचाया जा सके।

मीडिया और जनता की प्रतिक्रियाएं

मीडिया में इस मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे Twitter, Facebook और YouTube पर लोग अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। अभिभावक और शिक्षक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि बच्चों को इन जंक फूड्स से दूर रखना चाहिए।

वहीं, व्यापारिक संगठन और विदेशी कंपनियां कह रही हैं कि वे हमेशा की तरह नियमों का पालन कर रहे हैं, और यह consumer choice का मामला है। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इस consumer choice के पीछे भी जागरूकता की कमी है, और सरकार को तुरंत कदम उठाने चाहिए।

क्या कदम उठाने चाहिए सरकार को?

अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि वे इन विदेशी जंक फूड्स की बिक्री और विज्ञापन पर नियंत्रण लगाएं। कुछ सुझाव इस प्रकार हैं:

  • विज्ञापन प्रतिबंध: विशेष रूप से बच्चों के लिए इन उत्पादों के विज्ञापनों पर रोक लगाना।
  • सख्त नियमावली: सामग्री और पोषण मानकों को कड़ाई से लागू करना।
  • शिक्षा अभियान: स्कूलों और समाज में जागरूकता फैलाना कि इन जंक फूड्स का सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  • सार्वजनिक जगहों पर रोक: रेस्ट्रॉंस और बार में जंक फूड्स की उपलब्धता पर निगरानी बढ़ाना।

आखिरी सोच और भविष्य की राह

विदेशी व्यापारिक समझौते अक्सर आर्थिक विकास के लिए जरूरी होते हैं, लेकिन उनकी वजह से उच्च गुणवत्ता और स्वस्थ विकल्पों की उपलब्धता में बाधा नहीं आनी चाहिए। भारत सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विदेशी उत्पादों का स्वागत फायदेमंद तो हो, पर साथ ही साथ स्वास्थय सुरक्षा भी बनाए रखी जाए।

दोनों पक्षों का तालमेल और संजीदगी से बनें नियम ही इस स्थिति का स्थायी समाधान हो सकते हैं। बच्चों का स्वास्थ्य सबसे महत्वपूर्ण है, और इसे ध्यान में रखते हुए सभी संबंधित पक्षों को जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

यह विषय हमारे समाज के लिए एक चेतावनी भी है कि हमें अपने बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए जिम्मेदारी से कदम उठाने होंगे।

निष्कर्ष

बिल्कुल साफ है कि भारत में विदेशी जंक फूड्स की बढ़ती लोकप्रियता और टैक्स में राहतें बच्चों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। सरकार और अभिभावकों को मिलकर इन खतरों से निपटने की योजना बनानी चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ और जागरूक बने।

इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें।

अधिक जानकारी के लिए आप स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट देख सकते हैं।

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