भारत में नकली करेंसी का बड़ा जाल: साइबर जांच ने खोले करोड़ों के फर्जी नोटों के राज
भारत में नकली करेंसी का बड़ा जाल फैल रहा है, जिसकी जानकारी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने दी है। CloudSEK नामक कंपनी के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस जाल को पकड़ने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया है। इस रिपोर्ट में हमने जाना है कि कितने फर्जी नोट बाजार में फैल रहे हैं, किस तरह से यह कारोबार चल रहा है, और इसमें जुड़े मुख्य अपराधियों का पता कैसे चला है।
किस तरह चलता है नकली नोटों का कारोबार?
यह नकली नोट का कारोबार बहुत ही संगठित और गोपनीय तरीके से चल रहा है। फेक नोट बनाने वाले आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर, असली से मिलते-जुलते नोट तैयार करते हैं। ये नोट अक्सर सोशल मीडिया पर प्रचारित किए जाते हैं, जहां विक्रेता अपनी प्रोफाइल के जरिए खरीदारों से संपर्क करते हैं। इस मामले में फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों का बड़ा उपयोग हुआ है।
साइबर जांच में हुई बड़ी सफलता
CloudSEK के विशेषज्ञों ने अपने उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर इस नेटवर्क का भंडाफोड़ किया। उन्होंने अपने प्लेटफॉर्म XVigil की सहायता से ऐसे पोस्ट और अकाउंट को ट्रैक किया, जो नकली नोटों की बिक्री में संलिप्त थे। इन पोस्ट में ‘दूसरी सीरीज’ या ‘A1 नोट्स’ जैसे कोड वर्ड का इस्तेमाल हो रहा था।
मुकम्मल जांच में करीब 4,500 से अधिक पोस्ट पाए गए, जिनमें फर्जी नोटों का प्रचार किया जा रहा था। इन पोस्ट पर कुल मिलाकर 750 से अधिक फेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट जुड़े थे। साथ ही, 410 से अधिक फोन नंबर भी इन अपराधियों से जुड़े पाए गए। इन सबके माध्यम से वे आसानी से खरीदारों तक पहुंच रहे थे।
मुख्य अपराधियों का पता कैसे चला?
विशेषज्ञों ने फेस रिकग्निशन, जिओलोकेशन और सोशल मीडिया प्रोफाइल का इस्तेमाल कर अपराधियों का आइडेंटिटी का पता लगाया। इन अपराधियों का स्थान महाराष्ट्र के धुले जिले और पुणे शहर में पाया गया। जांच से पता चला है कि यह गिरोह महाराष्ट्र में ही केंद्रित है, जिसमें कुछ प्रमुख नाम भी सामने आए हैं।
इन अपराधियों ने अपने नकली नोटों का प्रचार करने के लिए हैशटैग #fakecurrency का प्रयोग किया। ये लोग व्हाट्सएप पर भी खरीदारों से संपर्क करते हैं, जहां वे ‘प्रूफ’ तस्वीरें और लाइव वीडियो कॉल के जरिए भरोसा बनाने की कोशिश करते हैं।
कैसे बनते हैं नकली नोट?
इन नकली नोटों का निर्माण बहुत ही पेशेवर तरीके से किया जाता है। इसमें एडोब फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही उच्च गुणवत्ता वाले प्रिंटर का प्रयोग होता है। नकली नोटों पर गांधीजी की वाटरमार्क व हरे सुरक्षा धागे जैसी असली जैसी विशेषताएं भी नकली नोटों में बनाई जाती हैं।
सरकार और कानून व्यवस्था की भूमिका
गूढ़ दस्तावेज़ और जांच रिपोर्टों के आधार पर, साइबर सुरक्षा एजेंसियों ने इस जाल का भंडाफोड़ किया है। ये खुफिया जानकारी संबंधित कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ साझा की गई है, ताकि इस नेटवर्क को तोड़ा जा सके। साथ ही, सुरक्षा एजेंसियां सोशल मीडिया प्लेटफार्मों से इन अकाउंट को हटाने और अपराधियों को पकड़ने का काम कर रही हैं।
आगे की राह और जागरूकता
यह मामला यह दर्शाता है कि डिजिटल युग में अपराधियों का नेटवर्क कितनी तेजी से फैल रहा है। सोशल मीडिया का प्रयोग जनता के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए और फेक नोटों को चलाने के लिए हो रहा है। जनता को इन फर्जीवाड़ों से बचने के लिए सतर्क रहने की जरूरत है। सरकार भी इस तरह के अपराधों पर नकेल कसने के लिए नई योजनाएं और तकनीकें अपना रही है।
क्या आप जानते हैं कि नकली नोटों का कारोबार कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है? नीचे कमेंट करें और अपनी राय जरूर साझा करें।
निष्कर्ष
यह मामला केवल एक डिजिटल फर्जीवाड़ा नहीं है, बल्कि यह भारत की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा भी बन सकता है। साइबर सुरक्षा ताकतों और कानून व्यवस्था का एक साथ प्रयास इस तरह के अपराधों को कम कर सकता है। डिजिटल युग में सतर्कता और तकनीक का इस्तेमाल ही भविष्य में सुरक्षित और मजबूत भारत का मार्ग है।
अधिक जानकारी और अपडेट के लिए आप PIB का ट्विटर जरूर फॉलो करें।