भारत की मल्टी-एलाइनमेंट रणनीति: विश्व की बदलती धारा में कैसे बना अपना रास्ता?

परिचय: 21वीं सदी में विश्व चित्र का व्यापक परिवर्तन

आधुनिक विश्व में आज एक नई वैश्विक व्यवस्था उभर रही है, जिसमें दो ध्रुवीय सत्ता के स्थान पर बहुध्रुवीय (multipolar) शक्ति का बोलबाला है। अब कोई भी देश अपने हितों के अनुसार अलग-अलग शक्तियों के साथ संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत भी ऐसी ही रणनीति अपना रहा है, जिसे हम “मल्टी-एलाइनमेंट” के नाम से जानते हैं। यह रणनीति भारत को न सिर्फ अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में मदद कर रही है, बल्कि उसे वैश्विक मंच पर भी मजबूत बना रही है।

मल्टी-एलाइनमेंट का अर्थ और महत्व

मल्टी-एलाइनमेंट का मतलब है कि कोई देश अपने अलग-अलग देशों या समूहों के साथ संतुलित और समन्वित संबंध बनाये रखता है। यह रणनीति किसी एक ब्लॉक या महाशक्ति के प्रभाव में पूरी तरह से आने की बजाय, अपने स्वतंत्र निर्णय शक्ति पर भरोसा रखती है। भारत की यह रणनीति, जिसमें वह अपने बहु-आयामी हितों का संरक्षण करता है, विश्व के बदलते राजनीतिक समीकरणों में उसकी मौजूदगी को मजबूत बनाती है।

भारत की वैश्विक संबंध: पश्चिम से पार्टनरशिप और पूर्व की pragmatism

सन् 2000 के बाद, भारत ने अपनी विदेश नीति में तेजी से बदलाव किया है। खासकर, अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के साथ उसके संबंध सशक्त हुए हैं। इसमेंँ मुख्य कारण हैं – चीनी आक्रामकता से मुकाबला, आर्थिक विकास के अवसर, आतंकवाद का मुकाबला और समुद्री मार्गों की सुरक्षा।

विशेष रूप से, भारत ने आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, पश्चिम के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसमें अमेरिकी व्यापार, टेक्नोलॉजी साझेदारी और मिलिटरी सहयोग शामिल हैं।

दूसरी ओर, भारत पूर्वी देशों के साथ भी अपनी रणनीतिक भागीदारी को जारी रखता है। चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारत ने कई तरह के सहयोगी प्रयास किए हैं। नेपाल से लेकर म्यामां तक, भारत ने अपनी ऊर्जा, सड़क और संचार प्रणालियों का विस्तार किया है।

उदाहरण के तौर पर, नेपाल ने हाल में अपनी बिजली का निर्यात भारत के माध्यम से बांग्लादेश को किया है। यह पहला मौका है जब नेपाल ने किसी तीसरे देश के साथ ऊर्जा व्यापार किया है। इससे क्षेत्रीय समेकन और चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करने में मदद मिलती है।

आधुनिक सुरक्षा सहयोग: क्वाड और वैश्विक मंच

भारत का क्वाड (Quadrilateral Security Dialogue) समूह, जो 2007 में स्थापित हुआ, उसकी इस रणनीति का एक बड़ा ऐतिहासिक हिस्सा है। इसमें भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया सम्मिलित हैं। यह समूह, समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने और चीनी प्रभाव के मुकाबले में एकजुटता पैदा करने के उद्देश्य से काम कर रहा है।

क्वाड, भले ही इसे कोई औपचारिक सैन्य गठबंधन नहीं माना जाता, पर इसकी भूमिका क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। चीन इसे ‘नाटो ऑफ़ द ईस्ट’ कहता है।

साथ ही, भारत G7 और G20 जैसे वैश्विक मंचों में भी अपनी भूमिका निभा रहा है। सितंबर 2023 में भारत ने अपने G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की, जिसमें उसने विकासशील देशों की आवाज को प्रमुखता दी। यह भारत की कुशल कूटनीति और विश्व मंच पर उसकी बढ़ती प्रतिष्ठा का संकेत है।

चुनौतियां और भविष्य की दिशा

हालांकि, भारत की यह मल्टी-एलाइनमेंट रणनीति काफी हद तक सफल सिद्ध हो रही है, पर इसमें चुनौतियां भी हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका-चीन तनाव और क्षेत्रीय तनाव भारत के सामने कई कठिनाई खड़ी करते हैं।

माना जाता है कि भारत को इन संबंधों को संतुलित करने और अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए, दीर्घकालिक और स्थिर नीति बनानी होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी रणनीति में लचीलापन बनाए रखना होगा, और साथ ही, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपनी नेतृत्व क्षमता को मजबूत करना होगा।

निष्कर्ष: भारत का दीर्घकालिक दृष्टिकोण

वास्तव में, भारत की मल्टी-एलाइनमेंट रणनीति इस बात का संकेत है कि वह वैश्विक राजनीति में अपने स्वतंत्र और स्वायत्त फैसले लेने की क्षमता को प्राथमिकता देता है। यह नीति उसके स्वतंत्रता, आर्थिक विकास और क्षेत्रीय स्थिरता के प्रयासों का प्रतिबिंब है।

आगे चलकर भारत की यह रणनीति, विश्व की बदलती धारा में उसकी भूमिका को मजबूत बनाएगी और उसे एक नई वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकेगी। यह स्थिति सभी देशों के लिए सीखने और समझने का अवसर भी है कि कैसे स्वायत्त और संतुलित diplomacy से हम अपनी आवाज़ को वैश्विक स्तर पर प्रभावी बना सकते हैं।

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