भारत की ईवी उद्योग संकट में: खजाने की कमी और सरकार की ढीली नीति से बढ़ी परेशानी

भारत में EV उद्योग को क्या संकट का सामना करना पड़ रहा है?

भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग अभी एक गंभीर मोड़ पर है, जहां इसके भविष्य पर भारी संकट मंडरा रहा है। मुख्य बातें यह हैं कि देश के कई EV निर्माता अपनी महत्वपूर्ण rare earth magnet की स्टॉक खत्म करने के कगार पर हैं, जिनका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर और थ्री-व्हीलर की मोटर बनाने में होता है। यह समस्या केवल आपूर्ति की कमी से ही नहीं जुड़ी है, बल्कि सरकार की नीतियों में देरी और प्रतिबंधों की वजह से और भी गंभीर बन गई है।

क्यों है यह संकट इतना गंभीर?

मूल समस्या यह है कि जुलाई 31 के बाद इन magnet की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो जाएगी। इसके चलते कई OEMs (Original Equipment Manufacturers) को अपने उत्पादन में भारी बाधा का सामना करना पड़ेगा। उद्योग सूत्रों के मुताबिक, कई कंपनियों के पास अभी सिर्फ कुछ ही दिनों के लिए magnet का स्टॉक बचा है। इन magnets का उपयोग कर, इलेक्ट्रिक वाहनों की गति और शक्ति का समर्पित नियंत्रण किया जाता है। यदि इनकी आपूर्ति नहीं रह गई, तो वाहन निर्माण पूरी तरह बंद होने का खतरा है।

सरकार की भूमिका और नई चुनौतियां

सरकार ने हाल ही में एक निर्देश जारी किया है, जिसमें OEMs से कहा गया है कि वे अपने पास मौजूद rare earth magnet का पर्याप्त स्टॉक दिखाएँ। यह कदम उद्योग के लिए एक ‘कैच-22’ जैसी स्थिति पैदा कर रहा है। यदि कंपनियों के पास magnet का स्टॉक दिखाना जरूरी है, तो उन्हें अभी से अपने इन्वेंट्री की पुष्टि करनी होगी। वहीं, दूसरी ओर, भारत के EV निर्माता इन magnets को आयात करने का विकल्प भी खोज रहे हैं, लेकिन इसके भी अपने ही खामियाज हैं।

आयात पर 15 प्रतिशत कस्टम ड्यूटी लगने की वजह से, वहीं दूसरी ओर, standalone magnets पर 7.5 प्रतिशत की दर से आयात की अनुमति है। इस अप्रत्याशित भिन्नता का फायदा उठाने के लिए, इंडियन ऑटोमोबाइल मैनुफैक्चरर्स सोसाइटी (SIAM) ने हाल ही में सरकार से अपील की है कि वे मोटरों और उनके घटकों पर लगने वाली कस्टम ड्यूटी को 7.5 प्रतिशत किया जाए।

SIAM के पत्र में लिखा है: “Standalone magnets पर BCD 7.5 प्रतिशत है, लेकिन पूरी मोटर या उसके घटकों का आयात 15 प्रतिशत पर हो रहा है। जब इन magnets पर प्रतिबंध है, तो पूरे मोटर की आयात लागत और भी बढ़ जाएगी। इसीलिए, हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह इन शुल्कों को कम करने के लिए कदम उठाए।”

सरकार की नीति में देरी क्यों हो रही है?

पिछले कुछ महीनों में सरकार की नीतियों पर सवाल उठे हैं। मेटल और रियर अर्थ मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों ने फेम-2 योजना के तहत सब्सिडी का दावा किया, लेकिन कुछ कंपनियों पर धोखाधड़ी का आरोप लगने के कारण सरकार ने कदम उठाए हैं। इस विवाद के कारण, सरकार अब नई नीतियों को लागू करने से पहले सतर्कता बरत रही है।

मंत्रालय का मानना है कि इन विवादों का समाधान होने के बाद ही उचित नीति निर्धारण किया जाएगा। हालांकि, उद्योग के विशेषज्ञों और उत्पादनकारों का मानना है कि यह पूरी इंडस्ट्री का समग्र पक्ष है, न कि एक कंपनी की इन्वेंट्री रिपोर्ट। उन्होंनें सरकार से आग्रह किया है कि वह इस संकट को गंभीरता से ले और तुरंत कदम उठाए।

आगे का रास्ता और उम्मीदें

कुछ कंपनियों, जैसे कि Ola Electric, ने दावा किया है कि उनके पास पर्याप्त magnet इन्वेंट्री है और वे फेराइट मोटर का विकल्प भी तलाश रही हैं। Ola का दावा है कि वे तीसरे क्वार्टर तक इस विकल्प की टेस्टिंग पूरी कर लेंगे। लेकिन, यह उदाहरण अभी उद्योग के अधिकांश हिस्सों के लिए आश्वासन नहीं बन पाया है।

उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हम सरकार से आग्रह करते हैं कि वे तुरंत इस मुद्दे पर ध्यान दें। यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए, तो देश का EV लक्ष्य प्रभावित हो सकता है और उद्योग पूरी तरह से ठप हो सकता है।”

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव

इस संकट का प्रभाव केवल उद्योग तक ही सीमित नहीं है बल्कि आम जनता पर भी पड़ेगा। इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें बढ़ने की संभावना है, क्योंकि आयात लागत बढ़ेगी। इससे ग्राहक की खरीदारी की क्षमता पर असर पड़ेगा। साथ ही, इस क्षेत्र में रोजगार और निवेश भी प्रभावित हो सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारत के स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा मिशन के लिए खतरा बन सकती है। सरकार को चाहिए कि वह इस क्षेत्र में तुरंत कदम उठाए और उद्योग को संकट से उबारने में मदद करे।

निष्कर्ष

भारत का EV उद्योग अभी एक चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रहा है। अनिश्चितता, आपूर्ति की कमी और नीति में देरी जैसी समस्याएं मिलकर इस क्षेत्र की प्रगति को धीमा कर सकती हैं। सरकार और उद्योग दोनों को मिलकर काम करना होगा ताकि इस संकट का समाधान निकाला जा सके। यह समय है कि भारत अपनी स्वच्छ ऊर्जा यात्रा को जारी रखे और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए जमीनी स्तर पर कदम उठाए।

आइए, इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें और अपनी बात साझा करें।

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