भारत ने पारिस्थितिकी के क्षेत्र में बड़ा कीर्तिमान स्थापित किया है
भारत ने हाल ही में अपने ऊर्जा संदर्भ में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है, जो दुनिया के सामने एक मिसाल बन गई है। देश ने अपने अक्षय ऊर्जा स्रोत से बिजली उत्पादन में आधे से अधिक हिस्सेदारी हासिल कर ली है, और वह भी निर्धारित समय से पांच साल पहले। इस सफलता ने न केवल ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव का संकेत दिया है, बल्कि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के हमारे प्रयासों को भी मजबूत किया है।
पेरिस समझौते के तहत भारत की प्रतिबद्धता और उसका क्रियान्वयन
2016 में विश्व की करीब 200 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में पेरिस वार्ता में अपने-अपने जलवायु लक्ष्यों का निर्धारण किया था। भारत ने इसमें अपने ऊर्जा मिश्रण में स्वच्छ ऊर्जा का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने का वादा किया था। विशेष रूप से, भारत ने घोषणा की थी कि 2030 तक उसकी ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी लगभग 40% से 50% तक पहुंच जाएगी। इस लक्ष्य की दिशा में सरकार ने कई प्रभावी नीतिगत कदम उठाए हैं, जिनमें सौर ऊर्जा को प्राथमिकता देना प्रमुख रहा है।
सौर ऊर्जा की उपलब्धियों और घटती कीमतें
आज, जब धूप खिलती है, भारत के पास अतिरिक्त बिजली होती है। देशभर में सौर ऊर्जा की स्थापना तेजी से बढ़ी है, और वैश्विक स्तर पर सौर पैनलों की कीमतों में जबरदस्त गिरावट आई है। पिछले दशक में सौर पैनलों की कीमत में लगभग 90% कमी आई है, जिसने भारत के लिए सौर ऊर्जा को और किफायती बना दिया है। इससे न केवल उत्पादन लागत कम हुई है, बल्कि घरेलू और उद्योगों दोनों के लिए इसे अपनाना आसान हुआ है।
ऊर्जा व्यवस्था में चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन अभी भी ऊर्जा क्षेत्र में कई चुनौतियाँ मौजूद हैं। जैसे कि मौसम आधारित ऊर्जा स्रोतों—जैसे हवा और सौर—से बिजली की स्थिरता सुनिश्चित करना। वर्तमान में, अधिकांश राज्यों की बिजली उपयोगिताएँ जब हवा और सौर ऊर्जा से उत्पादन कम होता है, तो वह फॉसिल फ्यूल पर निर्भर हो जाती हैं। इससे पर्यावरणीय प्रभाव बढ़ता है, साथ ही ऊर्जा की आपूर्ति में अस्थिरता भी आती है।
इस समस्या का समाधान पंप्ड हाइड्रो स्टोरेज जैसी तकनीकों में है, पर यह विकसित होने में समय लगता है। वहीं, बैटरी भंडारण एक बेहतर विकल्प है, हालांकि प्रारंभिक लागत अधिक है। हाल में बैटरी की कीमतें कम होने लगी हैं, और बड़े पैमाने पर उनका उपयोग आवश्यक है ताकि ऊर्जा की ‘इंटरमिटेंसी’ को नियंत्रित किया जा सके।
घरों में सोलर पैनल लगाने का बढ़ता रुझान
घर-घर में सौर पैनल लगाने की रफ्तार भी तेज हो रही है। राष्ट्रीय स्तर पर, घरेलू सौर ऊर्जा का हिस्सा लगभग 16% है। परंतु, यह अभी भी अपेक्षा से कम है। इसके मुख्य कारण हैं, बड़े घरों और उद्योगों के बीच सौर ऊर्जा के प्रचार में रुचि की कमी और महंगे बैटरी स्टोरेज की लागत।
रविशय यह है कि बिजली कंपनियां रॉफ़टॉप सोलर के पक्ष में प्रचार कम कर रही हैं, क्योंकि इससे उनके बड़े ग्राहक कई हिस्सों में वापस चले जाते हैं। यह उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है। किन्तु, यदि सरकार और निजी कंपनियां मिलकर इन प्रयासों को सशक्त बनाएं, तो देश भर में ऊर्जा की स्वच्छ और सस्ती आपूर्ति संभव है।
रुकावटें और भविष्य की दिशा
वर्तमान में, भारत को अपनी ऊर्जा व्यवस्था में स्थिरता लाने के लिए नई नीतियों और तकनीकों की जरूरत है। सरकार द्वारा इन्वेस्टमेंट को प्रोत्साहित करना, बड़े पैमाने पर सौर और बैटरी परियोजनाओं का विकास, और रॉफ़टॉप सोलर को बढ़ावा देना आवश्यक है। साथ ही, ऊर्जा को स्थानीय स्तर पर उत्पादन के आधार पर अधिक स्वतंत्रता देने पर भी ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
इस दिशा में भारत का प्रयास विश्व स्तर पर भी सराहना प्राप्त कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के ऊर्जा और जलवायु समिति के विशेषज्ञ कहते हैं कि भारत की यह उपलब्धि पूरे विश्व के लिए प्रेरणादायक है।UN और विश्वसनीय स्रोतों से मिली जानकारी के अनुसार, इस प्रगति ने न केवल देश के पर्यावरण को सुरक्षित किया है, बल्कि अर्थव्यवस्था की भी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
निष्कर्ष और आगे का रास्ता
कुल मिलाकर, भारत ने अपने जलवायु लक्ष्यों की दिशा में बहुत बड़ा कदम उठाया है। स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ते देश में, तकनीकी विकास और नीति समर्थन जरूरी हैं ताकि यह बदलाव स्थायी और प्रभावी बन सके। साथ ही, व्यक्तिगत स्तर पर भी ऊर्जा संवेदनशीलता और सतत जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता है। यह हम सभी के लिए जिम्मेदारी है कि हम पर्यावरण को सुरक्षित बनाने में अपना योगदान दें।
इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें और इस चर्चा में भाग लें। और अधिक जानकारी के लिए, आप भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय की वेबसाइट पर जा सकते हैं।