आसाम में MSMEs का बढ़ता योगदान: आर्थिक बदलाव की दिशा में एक कदम
असम के राज्यपाल लक्ष्मण प्रसाद आचार्य ने हाल ही में नॉर्थ ईस्ट MSME एक्जीक्लेव 2025 के उद्घाटन सत्र में कहा कि लघु, कुटीर एवं मध्यम उद्योग (MSMEs) देश की आर्थिक विकास की मुख्य रीढ़ बन रहे हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इस क्षेत्र का विकास न केवल रोजगार सृजन कर रहा है, बल्कि आत्मनिर्भरता एवं स्थानीय उद्योगों को भी मजबूती दे रहा है।
इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) ने किया था, जिसमें विभिन्न उद्योग संघों, सरकारी प्रतिनिधियों और विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस समागम में असम सहित उत्तर पूर्वी क्षेत्र की भागीदारी ने सभी का ध्यान आकर्षित किया।
MSMEs का क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय महत्व
गवर्नर ने कहा कि 21वीं सदी में MSMEs न केवल लाखों लोगों का जीवन यापन का साधन हैं, बल्कि यह भारत की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। कृषि के बाद ये सेक्टर देश के सबसे बड़े रोजगार सृजनकर्ताओं में से हैं। उन्होंने बताया कि खुशी की बात है कि असम जैसी प्राकृतिक संपदा से भरपूर जगह पर MSMEs की बदौलत बांस, चाय, रेशम और हस्तशिल्प जैसे पारंपरिक उत्पादों को विश्वस्तर पर पहचान मिल रही है।
इससे पूर्व, आचार्य ने ऐतिहासिक संदर्भ में भारत की आर्थिक स्थिति का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अनेक सदियों तक भारत का वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग 27 प्रतिशत हिस्सा था, पर औपनिवेशिक शोषण से हमारे उद्योग-धंधों का बुरी तरह क्षरण हुआ। स्वतंत्रता के बाद भी जब बड़ी कंपनियों को प्रोत्साहन मिला, तब MSMEs उपेक्षित रहे। अब सरकार ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, उद्यम साथी ऐप, समर्थ योजना और क्रेडिट गारंटी फंड जैसे अभियानों के माध्यम से इस सेक्टर को पुनः जीवित किया है।
उत्तर पूर्वी क्षेत्र की विशेषताएँ और संभावनाएँ
गवर्नर ने कहा कि उत्तर पूर्व का क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों, जैव विविधता और परंपरागत उद्योगों से भरपूर है। यहाँ के बांस, चाय, रेशम और हस्तशिल्प उत्पादों को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने के लिए MSMEs की भूमिका अहम है। उदाहरण के तौर पर, बांस उद्योग के माध्यम से असम का एक बड़ा उद्योग विकसित हो सकता है, जो ना सिर्फ आर्थिक रूप से लाभकारी होगा, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होगा।
उन्होंने विशेष रूप से इस बात पर बल दिया कि डिजिटल क्रांति और आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर स्थानीय उद्योग को वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है। इससे न केवल उत्पादों का मूल्य बढ़ेगा, बल्कि क्षेत्रीय स्वरोजगार भी बढ़ेगा।
सरकार की योजनाएँ और क्षेत्रीय विकास के प्रयास
आचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार MSMEs को मजबूत करने के लिए कई योजनाएँ चला रही है, जिनमें से प्रमुख हैं:
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: लोन और अनुदान की सुविधा प्रदान कर छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन
- उद्योग साथी ऐप: डिजिटल मार्केटिंग और नेटवर्किंग के लिए एक उपकरण
- समर्थ योजना: MSMEs के कौशल विकास और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना
- क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट: लोन लेने में सुरक्षा और सुविधा प्रदान करना
साथ ही, स्थानीय स्तर पर बांस, हस्तशिल्प, जैविक खेती और ईको टूरिज्म जैसे क्षेत्रों को आधुनिक तकनीक और डिजिटल प्लेटफार्म से जोड़ना जरूरी है। इससे छोटे उद्योगों का विस्तार होगा और उत्पादों की गुणवत्ता भी सुधरेगी।
प्रेरणादायक मानव-संबंधी पहलें और भविष्य की राह
स्थानीय Entrepreneurs और किसानों का मानना है कि यदि सही प्रशिक्षण और बाजार पहुंच उपलब्ध हो, तो उत्तर पूर्वी क्षेत्र में MSMEs न केवल घरेलू बल्कि अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी अलग पहचान बना सकते हैं। कई सफल उद्यमियों ने बताया कि डिजिटल माध्यमों का उपयोग कर वे अपने उत्पादों को दुनिया भर में पहुंचा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाते रहें, तो न केवल क्षेत्रीय बल्कि देश के समग्र आर्थिक विकास में भी तेजी आएगी।
देखने योग्य दिशा और सुझाव
यह जरूरी है कि हमें अपने परंपरागत उद्योगों को आधुनिक तकनीक से जोड़ना चाहिए। स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित कर उनकी पहुंच बढ़ानी चाहिए। इसके अलावा, युवा उद्यमियों को प्रशिक्षण देना और बाजार के नए अवसरों से अवगत कराना भी अहम होगा।
आदि, असम और पूरे उत्तर पूर्व के लिए MSMEs भविष्य में आर्थिक आत्मनिर्भरता का वाहक बन सकते हैं, यदि सही नीतियों और सहयोग से इस सेक्टर का विकास किया जाए।
इस विषय पर आपकी क्या राय है? नीचे कमेंट करें और जानिए कैसे आप भी इस क्षेत्र में कदम उठा सकते हैं।