अमेरिका में ट्रंप की टैरिफ की नई नीति का प्रभाव और उसकी आखिरी तारीख
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई टैरिफ नीति, जिसे उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान शुरू किया था, अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। 1 अगस्त 2025 को इन टैरिफ्स का प्रभाव शुरू होने वाला है। यह निर्णय ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिकी परिवार नई शैक्षिक सत्र की तैयारी कर रहे हैं, और इस कारण से उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर इसका प्रभाव जल्दी देखने को मिल सकता है।
क्या हैं ट्रंप के टैरिफ्स का मुख्य उद्देश्य?
डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सरकार के दौरान कई देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिए reciprocal tariffs यानी परस्पर टैरिफ लगाने की नीति शुरू की थी। उनका मानना था कि इससे अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सकता है और चीन, यूरोपीय संघ, कनाडा जैसे प्रमुख ट्रेड पार्टनर्स के साथ संतुलित व्यापार सुनिश्चित किया जा सकता है।
हालांकि, इन टैरिफ्स का सीधे तौर पर असर उपभोक्ताओं पर पड़ता है, क्योंकि इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ये टैरिफ्स घरेलू बाजार में महंगाई को बढ़ा सकते हैं और खासकर निम्न और मध्यवर्गीय परिवारों को अधिक प्रभावित कर सकते हैं।
प्रभावित देशों और वस्तुएं
अमेरिका की प्रमुख ट्रेड पार्टनर्स में कनाडा, यूरोपीय संघ, चीन, जापान, इंडोनेशिया और फिलीपींस शामिल हैं। इन देशों से आने वाली वस्तुओं पर ट्रंप प्रशासन ने 30% से 50% तक का टैरिफ लगाने का संकेत दिया है।
मसलन, कनाडा से होने वाले आयात पर 35% का टैरिफ और यूरोपीय संघ के देशों से वस्तुओं पर 30% का कर लगाया जाएगा। इससे उन वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिन्हें अमेरिकी परिवार रोजमर्रा की जरूरतों में इस्तेमाल करते हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि जिन वस्तुओं की कीमतें सबसे अधिक प्रभाव में आएंगी, उनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, खाध्य सामग्री और बच्चों की आवश्यक सामग्रियां शामिल हैं। ये वस्तुएं उन परिवारों के बजट पर बोझ बढ़ा सकती हैं जो पहले से ही महंगाई के दबाव में हैं।
आर्थिक विशेषज्ञों का दृष्टिकोण
येल बिज़नेस लैब के अर्थशास्त्र प्रमुख, एर्नी टेडेस्की, ने बताया कि इस साल फिर से शुरू होने वाली स्कूल की खरीददारी पर टैरिफ का विशेष प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा, “बच्चों की किताबें, स्टेशनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़े जैसे सामानों की कीमतें बढ़ सकती हैं।”
उनके अनुसार, यह नीति कमजोर परिवारों को ज्यादा प्रभावित करेगी क्योंकि उनके लिए जरूरी वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। टेडेस्की का मानना है कि टैरिफ्स को लेकर घोषित दरें 15% से 50% के बीच रहेंगी, जो सीधे तौर पर उपभोक्ता को प्रभावित करेंगी।
क्या आने वाले वर्षों में कीमतें और बढ़ेंगी?
ट्रंप की टैरिफ नीति का दीर्घकालिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगले 5 से 10 वर्षों में इन टैरिफ्स के कारण घरेलू कीमतें और भी बढ़ सकती हैं।
येल बिज़नेस लैब का अनुमान है कि इस नीति के चलते अगले दशक में लगभग 2.9 ट्रिलियन डॉलर का अतिरिक्त खर्च उपभोक्ताओं पर आएगा। वहीं, टैक्स फाउंडेशन ने भी इसी तरह का अनुमान लगाया है।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि इन टैरिफ्स के कारण कंपनियां अपनी उत्पादन शृंखला को फिर से बनाएंगी, हो सकता है कि कुछ कंपनियां अपने उत्पादन को अमेरिका में वापस ले आयें या फिर कम टैरिफ वाले देशों में स्थानांतरित कर दें। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को कुछ लाभ भी हो सकता है, लेकिन इससे उपभोक्ता को तत्काल जरूरी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
सरकार और जनता की प्रतिक्रिया
अमेरिकी सरकार का दावा है कि यह कदम व्यापार को संतुलित बनाने के लिए जरूरी है। राष्ट्रपति का कहना है कि ये टैरिफ “देश के हित में हैं”, और इससे चीन जैसी शक्तिशाली आर्थिक शक्तियों के साथ बेहतर समझौते किए जा सकते हैं।
वहीं, कई उद्योग संघ और उपभोक्ता समूह इस नीति के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उनका तर्क है कि इससे महंगाई और गरीबी बढ़ सकती है, खासकर उन परिवारों के लिए जो पहले से ही आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
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क्या हो सकता है आगे का कदम?
आगामी महीने में, व्यापार विशेषज्ञ और आर्थिक विश्लेषक इस कदम का पूरा विश्लेषण करेंगे। ट्रेड वार के इस नए दौर में, यह देखना अहम होगा कि अमेरिकी सरकार और अमेरिकी उपभोक्ता कैसे इस परिवर्तन का सामना करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह देखा जाएगा कि क्या अन्य देश अपने व्यापार नियमों में बदलाव करते हैं या नई टैरिफ नीतियों को अपनाते हैं।
निष्कर्ष
अमेरिका में ट्रंप के टैरिफ के नए नियम, जो 1 अगस्त से लागू होंगे, व्यापार और उपभोक्ता जीवन दोनों पर व्यापक प्रभाव डाल सकते हैं। जहां ये कदम देश के आर्थिक हितों को मजबूत बनाने के प्रयास हैं, वहीं इनका असर आम जनता और खासतौर पर गरीब और मध्यम वर्ग पर सबसे अधिक पड़ेगा।
अंत में, यह जरूरी है कि सरकार और व्यापार समुदाय मिलकर ऐसी नीतियों का निर्धारण करें, जो देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती दे और साथ ही आम जनता को राहत भी पहुंचाए।
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