परिचय: भारत के शहरों को जलवायु प्रभाव से सुरक्षित करने की चुनौती
भारत के तेजी से बढ़ते शहरीकरण के चलते देश को सदी के अंत तक अनुमानित लागत का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत को अपनी जलवायु-लचीली और स्थायी नगर-परियोजनाओं के लिए लगभग 2.4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करना जरूरी हो जाएगा। यह आवश्यक राशि न केवल शहरों में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाव का सुरक्षा कवच है, बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
शहरीकरण का व्यापक पैमाने पर बढ़ाव
2020 में भारत की शहरी जनसंख्या लगभग 480 मिलियन थी, जो 2050 तक लगभग 951 मिलियन तक पहुंचने का अनुमान है। यानी लगभग दोगुना। इस बड़े जनसंख्या वाले शहरों में पानी, परिवहन, स्वच्छता, और आवास जैसी बुनियादी सेवाओं का बोझ भी तेज़ी से बढ़ रहा है।
यह बढ़ाव जहां रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर लाता है, वहीं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों को भी दोगुना कर रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि इन शहरों के बुनियादी ढांचे का समय रहते सुधार नहीं किया गया, तो जलवायु-जनित आपदाएँ जैसे बाढ़ और लू का प्रकोप अधिक विनाशकारी हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव और देश की चिंता
यह रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली समस्याओं पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है। भारत में वर्तमान में ही वार्षिक जलभराव से करीब 4 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। यदि उचित उपाय नहीं किए गए, तो यह नुकसान 2030 तक बढ़कर 5 अरब डॉलर और 2070 तक 30 अरब डॉलर हो सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि तेज़ी से बढ़ते तापमान, अनियमित बारिश और समुद्र के स्तर में वृद्धि शहरों के जीवनयापन को अत्यधिक प्रभावित कर सकती है।
यह स्थिति न केवल आर्थिक, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरे का संकेत है।
आवश्यक निवेश और सरकार की भूमिका
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को 2050 तक कुल मिलाकर 2.4 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करना पड़ेगा। 2070 तक यह आंकड़ा बढ़कर लगभग 10.9 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
इस संबंध में, भारत सरकार और राज्य सरकारों को बड़े स्तर पर साझेदारी और निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है।
यह निवेश मुख्य रूप से आवास, परिवहन, जल, और कचरा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वर्तमान में अपनी जीडीपी का केवल 0.7% इन क्षेत्रों में खर्च करता है, जो वैश्विक मानकों से बहुत कम है। ऐसे में निजी क्षेत्र का भी इसमें सहयोग आवश्यक है।
प्रमुख कदम और सुझाव
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: ऊर्जा-प्रभावी जलापूर्ति, स्वच्छता, और हरित भवन जैसे क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करें।
- मौसम-आधारित फंडिंग प्रणाली: जलवायु-लिंक्ड फंडिंग और फिस्कल ट्रांसफर का उपयोग बढ़ाएँ।
- शिक्षा और जागरूकता: नागरिकों में जलवायु चेतना बढ़ाने के लिए कार्यक्रम चलाएँ।
अधिकारियों और विशेषज्ञों का मत
वर्ल्ड बैंक के भारत के प्रतिनिधि अगस्ते टानो कुआमे ने कहा, “शहरी क्षेत्रों में जलवायु-लचीली संरचनाएँ बनाना बेहद जरूरी है ताकि वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का सामना किया जा सके।”
वे आगे कहते हैं, “समय पर की जाने वाली ठोस कार्रवाइयाँ ही अरबों डॉलर की हानि से बचा सकती हैं।”
वहीं, सरकारी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि यदि इस दिशा में जल्दी कदम नहीं उठाए गए, तो भारत को भारी आर्थिक और मानव जीवन की हानि उठानी पड़ सकती है।
समाप्ति और निष्कर्ष
यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि भारत के शहरों के लिए जलवायु परिवर्तन बहुत बड़ा खतरा है, पर यदि समय रहते कदम उठाए गए, तो भारी नुक्सान से बचा जा सकता है। सरकार, निजी क्षेत्र, और नागरिकों का समर्पित सहयोग ही इस दिशा में सफलता की कुंजी है।
यह एक चुनौती है, लेकिन साथ ही अवसर भी कि हम अपने शहरों को अधिक टिकाऊ और सुरक्षित बना सकते हैं।
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