अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की यूक्रेन नीति में उठ रहे सवाल
डोनाल्ड ट्रंप ने अक्सर अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपने अनूठे विचार और बोलचाल के चलते सुर्खियां बटोरी हैं। इस समय चर्चा में है उनके यूक्रेन संबंधी बयानों और कदमों का विश्लेषण। उन्होंने कहा था कि वह 24 घंटे में ही रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कर देंगे। लेकिन असल में, उनके कार्य और बयान बहुत हद तक भ्रमित करने वाले हैं। इस लेख में, हम जानेंगे कि ट्रंप की नीति में आखिर क्या बदलाव आ रहा है और इसका अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर क्या प्रभाव है।
ट्रंप की यूक्रेन नीति का इतिहास और वर्तमान स्थिति
डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में ही अमेरिका ने रूस के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए थे। लेकिन उनकी नीति में एक खास बात यह थी कि उन्होंने कभी भी रूस को पूरी तरह से कठोर सजा नहीं दी। जब भी रूस-यूक्रेन संकट बढ़ता, ट्रंप अपने बयानों में असामान्य नरमी दिखाते। 14 जुलाई को उनके बयान में अचानक बदलाव आया, जब उन्होंने कहा कि वह यूक्रेन को हथियार बेचने का निर्णय वापस ले रहे हैं और नाटो देशों को भी हथियार बेचने का प्रस्ताव दिया है।
इस फैसले का मकसद साफ था कि ट्रंप ने रूस को कुछ समय तक अपने कदम उठाने का अवसर दिया। उन्होंने कहा कि यदि व्लादिमीर पुतिन 50 दिनों के अंदर युद्ध समाप्त नहीं करते, तो अमेरिका रुस के साथ व्यापार पर 100% टैरिफ लगाएगा। यह बयान सुनते ही बहुत से विशेषज्ञ हैरान रह गए। क्योंकि इससे पहले ट्रंप ने रूस को नरम दिखाने वाले संकेत दिए थे।
विशेषज्ञों का विश्लेषण: क्या बदलाव हो रहा है?
सभी विश्लेषक ट्रंप की इस नीति को भ्रामक मानते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट एंड्रयूज के रणनीति विशेषज्ञ प्रोफेसर फिलिप्स पेसेन ओ’ब्रायन कहते हैं, “यह निर्णय पुतिन को एक तरह का संरक्षण देने जैसा है। ट्रंप वाकई में पुतिन को 50 दिनों की मोहलत दे रहे हैं, जिसमें वह यूक्रेन में अपने युद्ध को जारी रख सकते हैं।” उनका कहना है कि इससे रूस को फायदा ही होगा, और युद्ध लंबा खिंच सकता है।
दूसरे विशेषज्ञ कहते हैं कि ट्रंप का यह नया इरादा केवल दिखावे का है। व्हाइट हाउस और अन्य अमेरिकी राजनेता प्रयास कर रहे हैं कि वे दिखाएं कि ट्रंप यूक्रेन के साथ हैं, लेकिन असल में उनका मकसद शायद कुछ और ही है।
आसन्न खतरे और वैश्विक प्रभाव
यदि ट्रंप की चेतावनी के मुताबिक, रूस पर 100% टैरिफ लगते हैं, तो इसका प्रभाव केवल रूस तक ही सीमित नहीं रहेगा। चीन और भारत जैसे देश भी प्रभावित होंगे, क्योंकि वे रूस से तेल और गैस खरीदते हैं। इस तरह की नीति से वैश्विक व्यापार पर असर पड़ सकता है, और अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता बढ़ सकती है।
इसके साथ ही, युद्ध को लेकर विश्व संगठन और सरकारी एजेंसियां भी सतर्क हैं। अनेक देशों की सरकारें अपना रूख स्पष्ट कर चुकी हैं कि वे किसी भी तरह के युद्ध में अधिकतम संयम बरतेंगी।
युद्ध का वर्तमान परिदृश्य और यूक्रेन की स्थिति
युद्ध के करीब दो साल पूरे होने को हैं, पर यूक्रेन अपनी क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने में सफल रहा है। यूक्रेन अभी भी अपने क्षेत्र का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित कर रहा है। इसके पीछे उसकी युद्ध कौशल और रणनीति का बड़ा हाथ है, साथ ही देशभक्ति की भावना भी।
वहीं, रूस अपने युद्ध के प्रयासों में लगा हुआ है, लेकिन उसकी संख्या और संसाधनों के बावजूद यूक्रेन का प्रतिरोध जारी है। विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन की ताकत उसकी लचीली रणनीति, अंतरराष्ट्रीय समर्थन और जनता का जज्बा है।
क्या भविष्य में युद्ध का अंत संभव है?
पिछले वर्षो में युद्ध का अंत किसी भी तरह से स्पष्ट नहीं है। परन्तु विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि रूस और यूक्रेन दोनों अपने-अपने विपक्ष में समझौता करते हैं, तो संघर्ष खत्म हो सकता है। शांति समझौता के लिए जरूरी है कि दोनों देश साथ आएं, और विश्व के प्रमुख देश मध्यस्थता करें।
इसी बीच, अमेरिका और यूरोप देशों का रुख सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित है। अमेरिकी राष्ट्रपति की नीति और उसके झुंड-झुंड बयान युद्ध के समाधान में बाधक भी हो सकते हैं।
निष्कर्ष: वैश्विक राजनीति का नया मोड़?
डोनाल्ड ट्रंप की इस नीति का मकसद स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह तय है कि इससे विश्व राजनीति में नई उथल-पुथल मच सकती है। उनके बयान और कदम यह संकेत देते हैं कि युद्ध को समाप्त करने का तरीका अब उतना सरल नहीं रहा है।
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