क्या भारत में युवा बेरोजगारी के संकट ने नई ऊंचाई छू ली है? जानिए सच्चाई और समाधान

परिचय: भारत में युवाओं के सामने रोजगार का बड़ा संकट

देश की आर्थिक प्रगति के बीच, भारत में युवा बेरोजगारी की समस्या गहरी होती जा रही है। नए आंकड़ों के अनुसार, देश में 15 से 29 वर्ष की उम्र के युवा वर्ग में बेरोजगारी का स्तर रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। यह समस्या सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था में कई जटिल कारणों में छुपी हैं।

बेरोजगारी का वर्तमान आंकड़ा और इसकी तुलना पहले के वर्षों से

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में युवा बेरोजगारी का स्तर अब लगभग 23% तक पहुंच चुका है। यह आंकड़ा 2011 की तुलना में दोगुना हो चुका है, जब यह करीब 11% था। विशेषज्ञों का मानना है कि COVID-19 महामारी ने इस स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है, जिससे लाखों युवा रोजगार से बाहर हो गए।

मूल कारण: क्यों बढ़ रहा है युवा बेरोजगारी?

  • शिक्षा व कौशल की कमी: कई युवा आधुनिक कौशल और तकनीकी ज्ञान से वंचित हैं, जिससे उद्योगों की मांग के अनुरूप प्रशिक्षित युवा नहीं मिल पाते।
  • उद्योगों का कमजोर विकास: छोटे और मझोले उद्योगों में मंदी के कारण रोजगार के अवसर सीमित होते गए हैं।
  • फिर भी उच्च शिक्षित युवा: ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट युवा भी नौकरी की तलाश में घर बैठे हैं, क्योंकि उनके पास अपेक्षाकृत कम कौशल हैं।
  • आर्थिक मंदी और लॉकडाउन: महामारी ने उद्योगों और सेवाओं दोनों को प्रभावित किया, जिससे रोजगार के अवसर घटे।
  • शिक्षा प्रणाली की खामियां: वर्तमान शिक्षा प्रणाली व्यावहारिक कौशल पर कम जोर देती है, जिससे युवाओं को रोजगार पाने में कठिनाई होती है।

सरकार की कोशिशें और नई नीतियां

सरकार ने युवा बेरोजगारी को कम करने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के तहत स्वरोजगार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसमें स्टार्टअप्स, लघु उद्योग, और कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा, रोजगार कार्यालयों की संख्या में बढ़ोत्तरी और नई प्रशिक्षण योजनाओं से युवाओं को मदद मिल रही है।

लेकिन, विशेषज्ञ कहते हैं कि इन प्रयासों को बड़े पैमाने पर लागू करने और आवश्यक संसाधनों का उपयुक्त उपयोग जरूरी है ताकि इन योजनाओं का लाभ वांछित स्तर पर पहुंच सके।

क्या हो सकता है समाधान?

  • मूलभूत शिक्षा और कौशल विकास: स्कूल शिक्षा में व्यावहारिक कौशल और तकनीकी ट्रेनिंग को शामिल किया जाना चाहिए।
  • इनोवेशन और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन: युवाओं को नई व्यवसायिक संभावनाओं की ओर बढ़ावा देना चाहिए।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: विदेशी निवेश और तकनीकी साझेदारी से रोज़गार के अवसर बढ़ सकते हैं।
  • सामाजिक सुरक्षा जाल: बेरोजगार युवाओं के लिए सरकारी सहायता और सब्सिडी योजनाएं जरूरी हैं।

युवा बेरोजगारी की सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

बेरोजगारी का असर केवल आर्थिक पक्ष तक सीमित नहीं है; यह सामाजिक स्थिरता और मानसिक स्वास्थ्य पर भी बड़ा प्रभाव डालता है। निराशा, चिंता, और तनाव का स्तर बढ़ने से युवा वर्ग की जीवनशैली और समाज में उनकी भूमिका प्रभावित हो रही है।

इसके साथ ही, बढ़ती बेरोजगारी देश के विकास के रास्ते में बड़ी बाधा बन सकती है। जब युवा वर्ग रोजगार से वंचित रहेगा, तो देश की आर्थिक वृद्धि में भी बाधा आएगी, जिससे व्यापक स्तर पर समस्याएं खड़ी हो सकती हैं।

अंतरराष्ट्रीय उदाहरण: क्या भारत से सीख सकते हैं?

कुछ विकसित देशों ने अपनी युवा बेरोजगारी को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाए हैं। जर्मनी और कनाडा जैसे देश में कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। इन देशों में रोजगार में सुधार के लिए सरकारी और निजी क्षेत्रों की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है।

भारत को भी इन मॉडल से सीख लेकर अपने कौशल विकास और रोजगार योजनाओं को मजबूत करने की जरूरत है।

आख़िरी शब्द: क्या उम्मीदें हैं?

युवा भारत का भविष्य हैं। सरकार और समाज दोनों का ऋण है कि वे संयुक्त रूप से इस समस्या का सामना करें। शिक्षा, कौशल विकास, और उद्योगों का सृजन, ये ही रास्ते हैं जिससे देश में युवा बेरोजगारी पर काबू पाया जा सकता है।

जैसे-जैसे सरकार नई योजनाओं और प्रयासों को गति दे रही है, सही दिशा में कदम उठाए गए हैं। इन प्रयासों का प्रभाव कब दिखेगा, यह समय ही बताएगा। लेकिन आशावान रहना जरूरी है, क्योंकि युवा शक्ति ही देश का आधार है।


आपकी राय क्या है?

आपको क्या लगता है, भारत में युवा बेरोजगारी को कम करने के लिए कौन से कदम सबसे असरदार होंगे? नीचे कमेंट करें और इस विषय पर अपने विचार साझा करें।

अधिक जानकारी के लिए आप पीआईबी की वेबसाइट या भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट भी देख सकते हैं।


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