इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, यानी EVs, आजकल भारत में खूब चर्चा में हैं। सड़कों पर टेस्ला से लेकर टाटा नेक्सॉन EV तक, हर तरफ इनकी बात हो रही है। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और पर्यावरण के प्रति जागरूकता ने लोगों को EVs की ओर खींचा है। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि EV खरीदने का मतलब सिर्फ शोरूम की कीमत चुकाना नहीं है? इसके पीछे कई ऐसे खर्चे हैं, जो शुरू में नजर नहीं आते, लेकिन बाद में जेब पर भारी पड़ सकते हैं। मैं पिछले कुछ सालों से दिल्ली में एक टाटा टिगोर EV चला रहा हूँ, और इस अनुभव ने मुझे कई ऐसी बातें सिखाईं, जो शायद शोरूम में कोई आपको न बताए। आज मैं आपके साथ सात ऐसे छिपे हुए खर्चों की बात करूँगा, जिन्हें EV लेने से पहले जानना जरूरी है।
पहली बात, चार्जिंग की लागत। लोग अक्सर सोचते हैं कि EV चलाना सस्ता है क्योंकि पेट्रोल-डीजल का खर्चा नहीं। लेकिन बिजली मुफ्त नहीं आती। भारत में बिजली की कीमतें राज्य के हिसाब से बदलती हैं। मिसाल के तौर पर, दिल्ली में घरेलू बिजली की दर लगभग 7-8 रुपये प्रति यूनिट है। अगर आपकी गाड़ी 30 kWh की बैटरी वाली है, और इसे फुल चार्ज करने में 25 यूनिट बिजली लगती है, तो एक बार चार्ज करने का खर्चा करीब 200 रुपये आएगा। अब अगर आप महीने में 15 बार चार्ज करते हैं, तो 3000 रुपये सिर्फ चार्जिंग पर। और ये घर की बिजली की बात है। अगर आप बाहर फास्ट-चार्जिंग स्टेशन पर जाते हैं, तो वहाँ 15-20 रुपये प्रति यूनिट तक चार्ज पड़ सकता है। मेरे एक दोस्त ने हाल ही में एक फास्ट-चार्जर पर अपनी MG ZS EV चार्ज की, और उसे 600 रुपये का बिल आया, सिर्फ 80% चार्ज के लिए।
दूसरा खर्चा है चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का। अगर आपके पास घर में पार्किंग है, तो आपको एक होम चार्जर लगवाना होगा। एक अच्छा 7.4 kW का AC चार्जर, जो ज्यादातर EVs के लिए ठीक है, उसकी कीमत 50,000 से 1 लाख रुपये तक हो सकती है। इसमें इंस्टॉलेशन का खर्चा अलग। मेरे घर में चार्जर लगवाने में 70,000 रुपये लगे, क्योंकि मुझे वायरिंग के लिए कुछ बदलाव करने पड़े। अगर आप किराए के मकान में रहते हैं या सोसाइटी में, तो वहाँ चार्जर लगवाने की इजाजत लेना और बिजली मीटर अलग करवाना अपने आप में एक सिरदर्द है। कई सोसाइटीज में अभी भी EV चार्जिंग के लिए नियम साफ नहीं हैं। और अगर आप पब्लिक चार्जिंग स्टेशन पर निर्भर हैं, तो वहाँ की लंबी लाइनें और कभी-कभी खराब चार्जर आपका समय और धैर्य दोनों खा सकते हैं।
तीसरी बात, बैटरी रिप्लेसमेंट का खर्चा। EV की बैटरी इसकी सबसे महंगी चीज है, और इसकी उम्र सीमित होती है। ज्यादातर कंपनियाँ 7-8 साल की वारंटी देती हैं, लेकिन इसके बाद क्या? एक नई बैटरी की कीमत 5 लाख से 10 लाख रुपये तक हो सकती है, गाड़ी के मॉडल पर निर्भर करता है। टाटा नेक्सॉन EV की बैटरी बदलने का खर्चा करीब 6-7 लाख रुपये है। अगर आपकी गाड़ी रोज 50-60 किलोमीटर चलती है, तो शायद 8-10 साल में बैटरी कमजोर होने लगे। मेरे एक रिश्तेदार ने अपनी पुरानी इलेक्ट्रिक कार की बैटरी बदलने की सोची, लेकिन कीमत सुनकर उन्होंने गाड़ी ही बेच दी। कुछ कंपनियाँ बैटरी लीजिंग का ऑप्शन दे रही हैं, लेकिन उसमें भी हर महीने 5,000-10,000 रुपये का अतिरिक्त खर्चा जुड़ सकता है।
चौथा खर्चा है इंश्योरेंस। EV का इंश्योरेंस पेट्रोल-डीजल गाड़ियों से थोड़ा महंगा होता है। इसका कारण है गाड़ी की ऊँची कीमत और बैटरी का जोखिम। मेरी टिगोर EV का इंश्योरेंस पहले साल में 25,000 रुपये था, जबकि मेरी पुरानी पेट्रोल कार का सिर्फ 15,000 रुपये। अगर आपकी गाड़ी में कोई छोटा-मोटा नुकसान होता है, जैसे बम्पर टूटना, तो रिपेयर का खर्चा भी ज्यादा आता है, क्योंकि EV के पार्ट्स अभी भारत में महंगे और कम उपलब्ध हैं। एक बार मेरी गाड़ी का साइड मिरर टूट गया, और उसे ठीक कराने में 12,000 रुपये लगे, जो मेरी पुरानी मारुति के मिरर से दोगुना था। इंश्योरेंस कंपनियाँ भी EV के लिए ज्यादा प्रीमियम चार्ज करती हैं, क्योंकि बैटरी डैमेज का रिस्क ज्यादा माना जाता है।
पाँचवाँ, सर्विसिंग और मेंटेनेंस। लोग सोचते हैं कि EV में इंजन नहीं, तो मेंटेनेंस का खर्चा कम होगा। ये आधा सच है। हाँ, आपको ऑयल चेंज या इंजन ट्यूनिंग की जरूरत नहीं, लेकिन बैटरी कूलिंग सिस्टम, इलेक्ट्रिक मोटर, और सॉफ्टवेयर अपडेट्स की सर्विसिंग जरूरी है। मेरी गाड़ी की सालाना सर्विसिंग में करीब 10,000-15,000 रुपये लगते हैं। अगर आपकी गाड़ी का सॉफ्टवेयर पुराना हो जाए, तो उसे अपडेट करने के लिए डीलरशिप पर जाना पड़ता है, और ये फ्री नहीं होता। एक बार मेरा चार्जिंग पोर्ट ठीक करने में 8,000 रुपये लगे, क्योंकि उसमें कुछ वायरिंग की दिक्कत थी। और हाँ, अगर आपकी गाड़ी का कोई खास पार्ट खराब हो जाए, तो उसे मंगवाने में हफ्तों लग सकते हैं, क्योंकि भारत में अभी EV पार्ट्स की सप्लाई चेन इतनी मजबूत नहीं है।
छठा खर्चा है रीसेल वैल्यू का। भारत में सेकंड-हैंड EV मार्केट अभी उतना विकसित नहीं है। अगर आप अपनी गाड़ी 5-6 साल बाद बेचना चाहें, तो उसकी कीमत पेट्रोल-डीजल गाड़ियों की तुलना में कम मिल सकती है। इसका कारण है बैटरी की उम्र को लेकर लोगों की चिंता। मेरे एक दोस्त ने अपनी 4 साल पुरानी EV बेचने की कोशिश की, लेकिन उसे सिर्फ 40% मूल कीमत मिली, जबकि उसी कीमत की पेट्रोल कार को 60% मिले। लोग पुरानी EV खरीदने से डरते हैं, क्योंकि बैटरी बदलने का खर्चा उनके दिमाग में रहता है। अगर आप गाड़ी लंबे समय तक रखने का प्लान करते हैं, तो ये शायद कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन अगर आप हर 4-5 साल में गाड़ी बदलते हैं, तो ये खर्चा आपको सोचने पर मजबूर करेगा।
सातवाँ और आखिरी खर्चा है समय और सुविधा का। EV चलाना आसान है, लेकिन चार्जिंग में समय लगता है। अगर आप घर पर चार्ज करते हैं, तो रातभर में गाड़ी फुल चार्ज हो जाती है। लेकिन अगर आप बाहर हैं और पब्लिक चार्जर पर निर्भर हैं, तो 1-2 घंटे इंतजार करना पड़ सकता है। दिल्ली-NCR में कई बार चार्जिंग स्टेशन पर लाइन लगी रहती है। एक बार मैं गुरुग्राम में एक चार्जिंग स्टेशन पर गया, और मुझे 45 मिनट इंतजार करना पड़ा। ये समय का नुकसान भी एक तरह का खर्चा है। इसके अलावा, भारत में अभी चार्जिंग स्टेशन हर जगह नहीं हैं। अगर आप लंबी ट्रिप पर जा रहे हैं, तो रास्ते में चार्जिंग की प्लानिंग पहले से करनी पड़ती है। मेरे एक ट्रिप में मुझे 100 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ा, क्योंकि रास्ते में चार्जर नहीं था।
तो, ये थे वो सात छिपे हुए खर्चे, जिनके बारे में आपको EV खरीदने से पहले सोचना चाहिए। मैं ये नहीं कह रहा कि EV न खरीदें। ये गाड़ियाँ पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, और लंबे समय में पेट्रोल-डीजल की तुलना में सस्ती भी पड़ सकती हैं। लेकिन, इन खर्चों को नजरअंदाज करना आपको बाद में पछतावा दे सकता है। मेरा सुझाव है कि EV खरीदने से पहले अपने ड्राइविंग पैटर्न, घर की पार्किंग, और बजट को अच्छे से समझ लें। अगर आप दिल्ली, मुंबई जैसे शहर में रहते हैं, जहाँ चार्जिंग स्टेशन आसानी से मिल जाते हैं, तो EV आपके लिए एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। लेकिन अगर आप छोटे शहर या गाँव में हैं, तो अभी थोड़ा इंतजार करना बेहतर हो सकता है। आखिर में, गाड़ी खरीदना सिर्फ एक खर्चा नहीं, बल्कि एक लाइफस्टाइल का फैसला है। सोच-समझकर कदम उठाएँ, ताकि बाद में पछताना न पड़े।