
अज़ीम हाशिम प्रेमजी भारत के उन गिने-चुने उद्योगपतियों में से हैं जिनकी पहचान केवल कारोबारी सफलता से नहीं, बल्कि समाज सेवा और मानवीय मूल्यों से होती है। वे विप्रो लिमिटेड (Wipro Ltd.) के संस्थापक नहीं, बल्कि पुनर्निर्माता हैं — जिन्होंने एक तेल बेचने वाली कंपनी को वैश्विक आईटी कंपनी में बदल दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
अज़ीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई में एक समृद्ध गुजराती मुस्लिम परिवार में हुआ। उनके पिता हाशिम प्रेमजी स्वतंत्र भारत के जाने-माने उद्योगपति थे और “राइस किंग ऑफ बर्मा” के नाम से प्रसिद्ध थे। प्रेमजी ने अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की, लेकिन पिता के निधन के बाद 1966 में मात्र 21 वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़कर भारत लौट आए और कंपनी की बागडोर संभाली।
विप्रो की कहानी: तेल से तकनीक तक
विप्रो (Wipro) की शुरुआत “Western India Vegetable Products Ltd.” नाम से हुई थी। यह कंपनी वनस्पति तेल और साबुन बनाती थी। प्रेमजी के नेतृत्व में विप्रो ने 1970 और 1980 के दशक में विविध क्षेत्रों में कदम रखा — जैसे कि हाइड्रॉलिक सिलेंडर, कंप्यूटर हार्डवेयर, और फिर आईटी सर्विसेज।
1990 के दशक में भारत के आईटी सेक्टर में तेज़ी से विकास हुआ, और प्रेमजी ने उसी दिशा में कंपनी को मोड़ा। विप्रो जल्द ही इंफोसिस, टीसीएस जैसी कंपनियों की कतार में खड़ी हो गई।
आज विप्रो दुनिया की अग्रणी आईटी कंपनियों में से एक है, जिसके पास 60+ देशों में ग्राहक और हज़ारों कर्मचारी हैं।
नेटवर्थ और उदारता
2025 तक अज़ीम प्रेमजी की अनुमानित नेटवर्थ लगभग 9 अरब डॉलर है। परंतु उन्होंने इसका अधिकांश हिस्सा दान कर दिया है। वे भारत के सबसे बड़े परोपकारी व्यक्तियों में गिने जाते हैं।
- 2013 में उन्होंने “The Giving Pledge” पर हस्ताक्षर किए — यह वादा है कि वे अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा समाज सेवा में दान देंगे।
- 2020 तक, उन्होंने 2.1 अरब डॉलर (लगभग ₹1.47 लाख करोड़) से अधिक राशि परोपकार के लिए दी थी।
- उनके द्वारा स्थापित “अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन” भारत में शिक्षा और सामाजिक समानता के क्षेत्र में काम करता है।
अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन
इस फाउंडेशन की स्थापना 2001 में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य है — सरकारी स्कूलों की शिक्षा प्रणाली को सशक्त बनाना।
मुख्य पहलें:
- भारत के 7 राज्यों (कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, और तेलंगाना) में 200 से अधिक जिलों में कार्यरत।
- शिक्षक प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम सुधार, और स्थानीय शैक्षणिक नेतृत्व को सशक्त बनाना।
- अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी (बेंगलुरु) की स्थापना 2010 में हुई — यह उच्च शिक्षा संस्थान शिक्षा, विकास और नीति निर्माण के क्षेत्र में स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
सम्मान और पुरस्कार
- पद्म भूषण (2005) और पद्म विभूषण (2011) भारत सरकार द्वारा सम्मानित।
- “एशिया का बिल गेट्स” कहे जाते हैं — उनकी दानदारी के लिए।
- फोर्ब्स, टाइम और हार्वर्ड बिज़नेस रिव्यू जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में उन्हें “सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों” की सूचियों में स्थान मिला।
- 2019 में “Hurun India Philanthropy List” में नंबर 1 पर।
प्रेरणा और दृष्टिकोण
अज़ीम प्रेमजी मानते हैं कि शिक्षा समाज का असली परिवर्तनकामी उपकरण है। वे यह भी मानते हैं कि कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) केवल दिखावा नहीं, बल्कि कंपनियों का नैतिक दायित्व है।
उनकी प्रसिद्ध कहावत है:
“Success is achieving your goals, but significance is making a difference.”
वे कम बोलने, ज़्यादा सुनने और विचारपूर्वक निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और स्पष्ट दृष्टिकोण का प्रतीक है।
सादगी और निजी जीवन
- अज़ीम प्रेमजी हमेशा साधारण जीवन शैली में विश्वास करते हैं। वे सादा भोजन करते हैं, साधारण कपड़े पहनते हैं, और व्यवसायिक विमानों की बजाय सामान्य उड़ानों से यात्रा करना पसंद करते हैं।
- उनका परिवार कभी भी मीडिया की चकाचौंध में नहीं रहा।
- उनके बेटे रिशाद प्रेमजी ने भी फाउंडेशन और विप्रो दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
निष्कर्ष
अज़ीम प्रेमजी एक ऐसे भारतीय हैं जिन्होंने व्यापार को केवल मुनाफ़े का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का ज़रिया बनाया। वे उन दुर्लभ व्यक्तियों में से हैं जो यह साबित करते हैं कि बड़ी कंपनियाँ और बड़ी ज़िम्मेदारियाँ साथ-साथ चल सकती हैं।
उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि जब नेतृत्व में उद्देश्य हो, संपत्ति में उदारता हो और दृष्टिकोण में मानवता हो — तब एक व्यक्ति करोड़ों के लिए प्रेरणा बन सकता है।