
विजय शेखर शर्मा, एक छोटे से शहर अलीगढ़ के युवक, ने 2010 में पेटीएम की नींव रखी, लेकिन उनकी राह आसान नहीं थी। शुरुआत में, भारत में डिजिटल पेमेंट का कॉन्सेप्ट लगभग अनसुना था। लोग नकद पर भरोसा करते थे, और ऑनलाइन लेनदेन को जोखिम भरा माना जाता था। विजय के सामने पहली चुनौती थी लोगों का विश्वास जीतना। उनके पास शुरुआती फंडिंग भी सीमित थी, और निवेशक डिजिटल वॉलेट के विचार पर शक करते थे। 2014 तक, पेटीएम घाटे में चल रहा था, और कर्मचारियों को वेतन देना मुश्किल हो गया था। एक समय तो विजय को अपनी कार बेचनी पड़ी ताकि कंपनी चलती रहे। फिर 2016 में नोटबंदी ने पेटीएम को रातोंरात स्टार बना दिया। लेकिन यहाँ तक पहुँचने में विजय ने कई रातें जागकर बिताईं। दूसरी बड़ी चुनौती थी तकनीकी बुनियादी ढांचा। पेटीएम का ऐप शुरुआत में धीमा था, और सर्वर क्रैश की समस्या आम थी। इसके लिए कंपनी ने अपनी तकनीक को अपग्रेड करने में लाखों रुपये खर्च किए। तीसरी चुनौती थी प्रतिस्पर्धा। गूगल पे और फोनपे जैसे दिग्गजों के आने से बाजार में हिस्सेदारी बनाए रखना मुश्किल था। आज पेटीएम यूपीआई ट्रांजेक्शन में अग्रणी है, जिसके 2024 तक 1.5 बिलियन मासिक लेनदेन हैं। लेकिन यह सफलता असफलताओं, आलोचनाओं और अनगिनत मेहनत की कहानी है। विजय की कहानी हमें सिखाती है कि धैर्य और नवाचार किसी भी सपने को हकीकत में बदल सकते हैं।