
रितेश अग्रवाल, एक 19 साल के लड़के ने 2013 में ओयो रूम्स की शुरुआत की, लेकिन उनकी कहानी किसी परीकथा से कम नहीं। रितेश ने कॉलेज छोड़कर अपना स्टार्टअप शुरू किया, जब उनके पास रहने के लिए किराए का पैसा भी नहीं था। शुरुआत में, ओयो एक छोटा सा प्लेटफॉर्म था जो बजट होटलों को ऑनलाइन लिस्ट करता था। लेकिन पहली चुनौती थी गुणवत्ता। कई होटल गंदे और असुविधाजनक थे, जिससे ग्राहकों की शिकायतें बढ़ीं। रितेश ने खुद सैकड़ों होटलों का दौरा किया और मानकों को लागू किया। 2015 में, ओयो को सॉफ्टबैंक से $100 मिलियन की फंडिंग मिली, लेकिन इसके साथ दबाव भी बढ़ा। दूसरी चुनौती थी तेजी से विस्तार। 2019 तक, ओयो 80 देशों में था, लेकिन इस जल्दबाजी ने घाटे को बढ़ाया। कंपनी का वैल्यूएशन $10 बिलियन था, लेकिन 2020 में कोविड-19 ने सबकुछ ठप कर दिया। होटल खाली पड़े थे, और ओयो को 60% कर्मचारियों को निकालना पड़ा। तीसरी चुनौती थी कानूनी विवाद। कई होटल मालिकों ने ओयो पर अनुचित शुल्क वसूलने का आरोप लगाया। रितेश ने इन गलतियों से सीखा और 2023 में ओयो को फिर से लाभकारी बनाया। आज ओयो के पास 1.5 लाख कमरे हैं, लेकिन रितेश की कहानी सिखाती है कि सफलता का रास्ता गलतियों से होकर गुजरता है।